Book Title: Anusandhan 2011 09 SrNo 56
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 12
________________ अनुसन्धान-५६ गाथामां छे. २३. गा. १३१-३३मां केशीकुमार श्रमणनी वात छे. तेमां गा. १३१ नो भाव स्पष्ट थतो नथी. २४. गा. १३४मां वज्र लाढपुत्रनु; २५. गा. १३५मां वरदत्तऋषिनी; २६. गा. १३६-३७मां तेतलिपुत्रनी वात आवे छे. २७. १३८१४२मां वारत्तऋषि, स्वरूप वर्णव्युं छे. ते मुनि पार्श्वनाथ जिनना शिष्य छे तेर्बु गा. १४२मां छे. २७. १४३-४७ मां कूर्मापुत्रनी वात छे. ते गृह-स्थ केवलज्ञानी छे; अने ते केवली होवानी जाण, महाविदेहना जिन थकी विद्याधर मुनि जाणी लाव्या त्यारे ज थई छे (गा. १४५). २८. गा. १४८मां 'गोसन्न' नामे कोई ऋषिनी वात थई लागे छे. आ गाथामां शुं तात्पर्य छे ते स्पष्ट थतुं नथी. २९. गा. १४९-५१मां वैश्यायन ऋषिनी वात छे. गोशालाए तेमने स्खलना पहोंचाडतां ते रोषे भराया; तेज (तेजोलेश्या) छोड्यु; परन्तु तेनी समीपमां ज वीरप्रभु होवानुं ध्यानमां आवतां ज तेमणे ते पार्छ खेंची लीधुं; एवी वात आमां छे, जे अद्भुत छे. प्रसिद्ध कथा एवी छे के वैश्यायने तेजोलेश्या मूकी, तेनाथी गोशालाने बचाववा माटे प्रभु वीरे शीतलेश्या छोडी हती. लागे छे के आ ‘स्तव'गत वृत्तान्त वधु तथ्यपूर्ण छे; प्रसिद्ध कथा ते पाछळथी थयेल फेरफाररूप हशे. ३०. गा. १५२-१६० मां 'निन्न' कुलपुत्र मुनि विषे वर्णन छे. बे 'कुलल' (पक्षी के प्राणी-विशेष)ने एक मांस-खण्ड खातर लडतां जोईने तेमने वैराग्य थयो हतो. तेमना निर्वाण पछी चमरेन्द्रे तेमना शरीरने बे बाजुथी रुंध्यु (अर्थात् अन्तिमविधि करतां मोहवश के रागवश रोकतो हतो), तेमज तेणे तेमनी स्तुति करी (गा. १५९-६०). आ नाम-वर्णन पण अप्रसिद्ध लागे छे. ३१. गा. १६१-६९ मां गजसुकुमाल मुनिनुं बयान छे. गज (हाथी)नी सुंढ जेवी भुजाओ, गज जेवी चाल, गजना मद जेवी देह-गन्ध, तेथी नाम पड्यु गजसुकुमाल (गा. १६६). तेना माता-पिताए नेमिनाथ प्रभुने शिष्य तरीके ते अर्पण को हतो (गा. १६२). तेमना यौवन पाछळ राजकन्या चन्द्रलेखा पागल बनी हती (गा. १६५). (ते परण्या होय तेवं जणातुं नथी). गजसुकुमालने तेमना ससराए स्मशानमां उपसर्ग करेलो एवी प्रचलित कथानो अहीं गन्ध पण

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