Book Title: Anusandhan 2011 09 SrNo 56 Author(s): Shilchandrasuri Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad View full book textPage 9
________________ ऑगस्ट २०११ हवे गा. १२ थी शरु थती स्तवनाओ ऊपर दृष्टिपात करीए : १. गा. १२-१८ मां भगवान महावीरनी स्तवना छे. १५ मी गाथामां तेमने 'वीरभद्र' एवा नामे वर्णव्या छे, ते ध्यानार्ह छे. २. गा. १९ - २३ मां गौतम गणधरनी स्तवना छे. तेमां तेमना जीवननी प्रमुख घटनाओनो निर्देश छे. ३. गा. २४-३०मां धन्ना- धन्य अणगारनुं वर्णन छे. तेमणे केवां - केटलां सुख-साधनोनो त्याग कर्यो छे अने तेमनो आहार केवोक हतो तेनुं बयान अचंबो जन्मावनारुं छे. ४. गा. ३१ - ३४मां लोहार्यनुं स्वरूप वर्णवतां कह्युं के ‘लोहार्य अर्हन् (महावीर ) नी वैयावच्च करता हता, अने तेमना पात्रमां आणेलो आहार भगवान पोताना करपात्रमां लई वापरता. सेंकडो श्रमणोमां लोहार्यने भगवान बोलावता. ५. गा. ३५-३८मां अइमुत्ता ऋषिनी स्तुति छे. आमां विशेष वात ए छे के, प्रचलित कथानक - अनुसार, बाल अतिमुक्तक रमी रह्या हता, त्यां गौतमस्वामीने आहारार्थे जतां जोया, ते रमवानुं छोडीने घेर लई गयो; पछी तेणे गौतम प्रभुनी शिष्यता स्वीकारी. आ कथाथी तद्दन जुदुं, आमां गा-३५३६ प्रमाणे, अतिमुक्तकनी नजरे आहारार्थे जता तीर्थंकर चडी जाय छे; ते तेमने आहार-दान करे छे; अने पछीथी तेनां मावतर प्रभु वर्धमानने अतिमुक्तकन शिष्यभिक्षा पण आपे छे; आवुं वर्णन छे. आवां मौलिक वर्णनो आ कृति प्राचीन होवानुं साबित करे छे. ३ ६. गा. ३९-४० तथा ४३ आ त्रण गाथाओ सुनक्षत्र अणगारने स्तवे छे. तेमां गोशालाने शिखामण आपवा जतां तेमनो स्वर्गवास थयो तेवो उल्लेख छे. प्रचलित कथामां गोशालाने हाथे सुनक्षत्र अने सर्वानुभूति - एम बे मुनिना स्वर्गवासनी वात छे; अहीं ऋषिमण्डलना वर्णनमां सुनक्षत्रनी गणना छे, पण सर्वानुभूतिनी वात सुध्धां नथी, ते बहु महत्त्वनुं जणाय छे. बनवाजोग छे के एकज मुनि पर गोशालके प्रहार कर्यो होय, अने पाछळथी तेमां उमेरो करीने बे मुनिनी वात आलेखाई होय. गा. ४१-४२मां धन्ना अणगारनी वात पुनः थई छे. प्रतिलेखकनी गरबडने कारणे ३० मी गाथा साथे आ बे गाथाओ होवी जोईए, तेना बदले अहीं आवी गई लागे छे. २४ - ३० गा. मां थयेल वर्णन अधूरुं लागे छे, जे आ बे गाथा उमेरातां पूर्ण बने छे.Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 187