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अनुसन्धान- ५४ श्री हेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग - २
उपलब्ध थती बे परम्परा वच्चेनी चर्चा :
अवग्रहमां प्राथमिक विशेषोनुं ग्रहण होय अ पक्ष बहु प्राचीन काळथी अस्तित्व धरावे छे. वि. भाष्यमां जे विस्तारथी आ मतने सम्बन्धित चर्चा छे १ ते जोतां श्रीजिनभद्रगणिना समय सुधीमां आ मते बहु ऊंडां मूळियां नांखी दीधां होवानुं जणाय छे. आ पक्षना टेकेदारो पासे महत्त्वनो आधार होय तो अ नन्दीसूत्रगत अवग्रहादिविषयक पाठनो हतो. आ पाठ परथी अवग्रहमां अव्यक्तसामान्यनुं नहीं; पण प्राथमिक विशेषोनुं ग्रहण होय अवुं सीधेसीधुं फलित थतुं हतुं. नोंधपात्र वात अ पण छे के दिगम्बर परम्परा जे अवग्रह पूर्वे दर्शननुं अस्तित्व पहेलेथी स्वीकारती आवी हती, ते पण आ पाठना आधारे साबित करी शकाय तेम हतुं. ३
नन्दीसूत्रमां श्रावणप्रत्यक्षनी उत्पत्ति वर्णवतो पाठ आम छे : "से जहानामए केइ पुरिसे अव्वत्तं सद्दं सुणेज्जा, तेणं सद्देत्ति उग्गहिए, न उण जाणइ के वेस सद्देत्ति... ।" आमां " तेणं सद्देत्ति उग्गहिए" अ वाक्यनो तार्किकोओ " तेण (= प्रमाता व्यक्तिओ) शब्द ओवो अवग्रह कर्यो" आवो अर्थ करी, अवग्रहमां शब्दत्व जेवा प्राथमिक विशेषोना ग्रहणने पण नकारनारी आगमिक परम्परा सामे वांधो ऊठाव्यो.
आनी सामे श्रीजिनभद्रगणिओ आपेलो जवाब आ मुजब छे : ४ " शब्द ओवो अवग्रह कर्यो' अवुं नन्दीसूत्रना पाठ परथी भले जणातुं होय; पण अनुं तात्पर्य वास्तवमां जूदुं ज होवुं जोईओ. कारण के १. 'आ शब्द छे' अ ज्ञान वाचक शब्दना उल्लेखपूर्वकनुं छे. अने वाचक शब्दनो उल्लेख अन्तमुहूर्त सिवाय सम्भवे नहीं. तो अकसामयिक अर्थावग्रहमां आ बोध घटे ज कई रीते ? २. 'आ शब्द छे' ओवा बोध माटे रूपादिनो व्यवच्छेद आवश्यक छे अने आ व्यवच्छेद ईहा वगर थाय नहीं. व्यञ्जनावग्रह अने अर्थावग्रह वच्चे काळव्यवधान
१. - ४. वि. भाष्य गाथा २५२ - २८८
२. “विषयविषयिसन्निपाते सति दर्शनं भवति, तदनन्तरमर्थस्य ग्रहणमवग्रहः '
१.१५, त.वा.
१.१५.१
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सर्वार्थसिद्धि
३. 'अव्वत्तं सद्दं सुणेज्जा" अ वाक्य दर्शननुं अस्तित्व सूचवे छे ओम मानी शकातुं हतुं.