Book Title: Anusandhan 2011 02 SrNo 54
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 129
________________ फेब्रुआरी २०११ १२१ न को धर्म गये भवेजी, करवू पिण अतिकष्ट, वृतमांन भवरागताजी, तेणे गण्य भव नष्ट, जगतगुरु !..... २७ प्रभु आगल सुं दाखवूजि, मुझ आश्चर१४ परिवार, तिनकाल जीण ! जांण छो जी, तरियो तुज आधार, जगतगुरु !..... २८ भद्रक बुद्धे मुनि नमेजि, तेहमां हरखं रे आप, मुनिपद हासि करुंजी, ते सगलो संताप, जगतगुरु !..... २९ जिनमत वितथ परूपणाजी, करतां न गणि भित, जस-ईंद्रीसुख लालचेजी, किधो काल वति(ती)त, जगतगुरु !..... ३० तत्वातत्त्व गवसणाजी, करवू पिण अतिदूर, तत्वपरूपक मानथि जि(जी), विस्तार्यो भव भूर, जगतगुरु !..... ३१ तुम सम दिनदयालूओजि, नवि बिजो जिनराज, दयाठांम मुझ सरिखोजि, छे बिजो कुण आज, जगतगुरु !..... ३२ श्रीसीधाचलमंडणोजि, रिषभदेव जिनराज, रत्नसागरसूरि स्तव्योजि(जी), निर्मल समकितकाज, जगतगुरु !..... ३३ निज नाण-दर्सण-चरण-वि(वी)रज, परमसुख रयणायरो, जिनचंद्र नाभिनरिंदनंदन, त्रिजगजिवन भायरो, उवज्झायवर श्रीदि(दी)पचंद, सिस गणी देवचंद्र ए संगभक्ती भविक जिवने, करो मंगलवृंद ए ॥ जगतगुरु !.....३४ ॥ इति श्री रत्नागर पच्चीसीनी भास संपूर्णः ॥ -x

Loading...

Page Navigation
1 ... 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209