Book Title: Anusandhan 2011 02 SrNo 54
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 116
________________ १०८ अनुसन्धान-५४ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-२ इति ओएसनगरे सपादलक्षश्रावका(काः) प्रतिबोधिता(ताः), ओएसवालज्ञातिः स्थापिता । तस्य स्तोत्रमिदं प्रातर्व्याख्यानपद्धतौ प्रत्यहं पठनीयम् ॥ संवत १९५८ रा मिति कार्तिक कृष्णपक्षे तिथौ १० म्यां भृगुवासरे लिप्यी(पी) कृतम् । पं. धीरसुन्दरेण ओएसकवलागच्छे वृद्धपौषधशालायाम् । लेखं भूयात् । सु(शु) भं भवतु । श्रीकल्याणमस्तु । श्री रस्तु । श्री ॥ २. हीरविहारविभूषण-श्रीऋषभदेवस्तवनम् ॥ए ई०॥ श्रीगुरुभ्यो नमः ॥ नत्वा श्रीगुरुचरणौ, स्मृत्वा श्रीशारदां च वरवरदाम् । स्तोष्ये हीरविहारं, तदनु च तद्भूषणं वृषभम् ॥१॥ विमलतोरणगोमटिकायुतं, विहितहीरगणाधिपपादुकम् । प्रतिदिनं वरसूरतिबन्दिरो-त्तममहेभ्यजनैः कृतभावनम् ॥२॥ सकलरत्नसुधाकरवाचक-विहितवासविधानप्रतिष्ठया । सुकृत-लब्धि-सुनेमिसुवाचक-त्रितयशोभनपादुकयाऽन्वितम् ॥३॥ प्रवरभूषणनागर-नागरी-विहितगीत-गुण-स्तुतिकं जनाः । महिमधाम जिनादिममण्डितं, नमत हीरविहारमनुत्तरम् ॥४॥ कमलकोमलकान्तिविराजितं, भविकभावुकसन्ततिकारकम् । ऋषभदेवजिनं गतदूषणं, नमत हीरविहारविभूषणम् ॥५॥ मदनतुङ्गमहीरुहवारणं, सकलविष्टपसंस्थितिकारकम् । भवपयोधिपतज्जनतारणं, नमत हीरविहारविभूषणम् ॥६॥ सुगुरुहीरमुनीश्वरसेवितं, विजयसेनगुरुत्तमसंस्तुतम् । विजयदेवगुरुप्रणतं सदा, नमत हीरविहारविभूषणम् ॥७॥ युगलजन्मिजनावृषवारणं, प्रथमपात्रविहायितसाधनम् ।। प्रथममिक्षुरसाधिकपारणं, नमत हीरविहारविभूषणम् ।।८।। गजभयादिभयाष्टकवारणं, स्वकविहारपवित्रवसुन्धरम् । वरनवीनपुराग्रिममण्डनं, नमत हीरविहारविभूषणम् ॥९।।

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