Book Title: Anusandhan 2009 12 SrNo 50 Author(s): Shilchandrasuri Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad View full book textPage 9
________________ छे. ए माटे कोई संस्था तैयार थवी जोईए. में तेज क्षणे ते प्रस्तावने वधावी लेतां कह्यु : नाणांकीय तथा व्यवस्था बन्ने जवाबदारी 'हेमचन्द्राचार्य ट्रस्ट' संभाळशे, पण पत्रिकाना सम्पादनसंकलननी जवाबदारी तमे स्वीकारो तो ज. नाम तमारुं आवशे, बीजा- नहीं. एमां लेखो लखवा, अन्यना लेख मेळववा, ए बधी बाबतो तमारे जोवानी. कोने कोने अंक मोकलवा, ते पण तमारे नक्की करी आपवानु. लवाजम राखवानुं नहीं, निःशुल्क ज बधे मोकलवाना. आ रीते नक्की थयु - अनुसन्धान, प्रागट्य. मारी आ विषये कोईज आवडत के सज्जता नहि, छतां तेमणे पहेला अंकथी ज मारुं नाम मूक्युं. केम? तो मारी नम्र समजण मुजब, कोई पण जैन संस्था आवा विलक्षण कार्यमां नाणां खरचवा तैयार न थाय तेवा वातावरणमां, मारा सूचनथी एक संस्था तैयार थई तेना ऋणस्वीकारनी भावनाथी तेमणे मारु नाम लख्यु, जे योग्य के अयोग्य रीते पण, आज लगी चालु रहुं छे. मने तो, एक मूर्धन्य विद्वज्जन द्वारा सूचित, मजाना के मूल्यवान् विद्याकार्यना निमित्त बनवानो मोटो परितोष हतो. ____ हवे एक योगानुयोग एवो थयो के ए ज अरसामां अमारे 'श्रीहेमचन्द्राचार्य ट्रस्ट'ना आश्रये, पं. दलसुखभाई मालवणिया तथा श्री हरिवल्लभ भायाणीनु, 'हेमचन्द्राचार्य चन्द्रक' प्रदान करीने, बहुमान करवानुं हतुं. एटले पछी निश्चित थयुं के पत्रिकानो पहेलो अंक ते बहुमानना दिने ज प्रकाशित करवो. तरत ज तैयारी आदरी, अने बहु ज थोडा दहाडामां, ४२ पृष्ठोनो प्रथम अंक निर्धार्या प्रमाणे नियत समये प्रकाशित थई शक्यो. ओ तैयार करवामां पण दृष्टि अने महेनत-बधुं भायाणी साहेब अने तेमना विद्यार्थी डॉ. कनुभाई शेठ वगेरेनुं ज हतुं, ते आ तके स्वीकारवू जोईए. प्रथम अंकना मुखपृष्ठ पर, पत्रिकानुं 'सूत्र' अने पत्रिकानो उद्देश, तेमणे आ प्रमाणे लख्या : (१) Logo : 'मोहरिते सच्चवयणस्म पलिमंथू' - मुखरता सत्यवचननी विघातक छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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