Book Title: Anusandhan 2009 12 SrNo 50 Author(s): Shilchandrasuri Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad View full book textPage 8
________________ निवेदन अनुसन्धान' नुं ऐतिह्य मारी सामे अनुसन्धानना १ थी ४९ अंको पड्या छे. मनमां एवं ऊग्युं छे के आ सामयिक के अनियतकालिक पत्रिकानी कथा आलेखुं; एने माटे अंकोनो आ ढगलो करीने बेठो छु. अढारे वर्षे, सगीर अवस्थामांथी बहार नीकळीने यौवनना उंबरे डग भरती पत्रिका परत्वे, आवुं अवलोकन करवानुं साव अप्रस्तुत तो नहीं ज गणाय, एवा ख्यालथी आ प्रारम्भुं छं. ⭑ ई. १९९३नी आ वात छे. श्रीभायाणी साहेब उपाश्रये मने अपभ्रंश भाषा शीखववा माटे रोज आवता हता. वात हती सप्ताहमां बे वार आववानी. पण तेओ लगभग रोज आवता. समय अर्धा-पोणा कलाकनो नक्की करेलो. बेसे ने वातो चाले बे-अढी कलाक. विश्व भरना साहित्यनी, भाषाओनी, विद्वानोनी, विद्वानोनां कार्योंनी अनेक वातो तेओ करे, अने आपणने प्रतीति करावे के भौतिक दुनियानी कोई पण बाबत करतां विद्याप्रीति तथा विद्याकार्य जराय ओछु के हलकुं-नकामुं - बिनउत्पादक नथी. आ सत्संग दरमियान ज एमणे एक दिवस वात उपाडी के " प्राकृत भाषा-साहित्य तथा जैन साहित्य विषे जे पण थोडुंघणुं काम थई रह्युं छे, तेनो विद्वज्जगत्ने ख्याल आवे के व्यापक वर्गने जाणकारी मळे तेवुं एक सामयिक प्रगट थवुं जोईए. कोई जैन संस्थाने आवुं काम करवानुं मन केम नथी थतुं ? आ एक बहु आवश्यक कार्य छे." में आ सूचनना ऊंडाणमां ऊतरीने तेना आकार - प्रकार वगेरे विषे समजवानी जिज्ञासा व्यक्त करी, तो तेमणे सूचव्युं : 'अनुसन्धान' नाम रखाय. अनियत -कालिक होय. मोटा शोध-सामयिकनो फटाटोप न राखतां माहितीपत्रिकानुं स्वरूप आपी शकाय तेमां संशोधन - प्रकाशननां कार्यो ज्यां ज्यां चालतां होय, जे व्यक्ति के संस्था करती होय, तेनी विगतो भेगी थाय एटले अंक करवानो. महत्त्वनी वात नाणांकीय रोकाणनी छे, अने वितरण व्यवस्थानी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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