Book Title: Anusandhan 2007 07 SrNo 40
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 4
________________ निवेदन संशोधन- लक्ष्य ज्ञानप्राप्ति अने जिज्ञासा-तृप्ति छे एटलुं जो समजाई जाय, तो घणा विसंवादोथी बची शकाय. संशोधन ए कोई व्यक्तिने, ग्रन्थने, ग्रन्थकारने, परम्पराने के अन्य कोई बाबतने ऊतारी पाडवा के तोडी पाडवा माटेनी प्रक्रिया नथी. कोई बाबत, तुलनात्मक के समीक्षात्मक दृष्टिए थतां अध्ययनना परिणामे, भूलभरेली पुरवार थाय, तो तेने ते स्वरूपे एटले के साचा के योग्य स्वरूपे प्रकाशित तथा प्रस्तुत करे तेनुं नाम संशोधन, हवे कोई आ प्रक्रियाथी अनभिज्ञ के पछी आवी प्रक्रिया परत्वे पूर्वग्रहदृष्टिथी ज विचारनार व्यक्ति होय अने तेने 'पीळं एटलं पित्तळ' ज देखाय, तो तेमां संशोधन/संशोधकनो दोष न मनाय. छतां कोई तेम माने तो ते तेना ज हिसाबे ने जोखमे छे. बाकी संशोधन ए तो एक सतत चाल्या करवी जोईती शुद्धीकरणनी प्रक्रिया छे, जो तेनी पाछळ बीजो कोई दुराशय न होय तो. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 96