Book Title: Anusandhan 2002 07 SrNo 20
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 38
________________ अनुसंधान-२० 33 भगवती, विशेषावश्यक वगेरे ग्रंथोनो उल्लेख पण यथास्थाने आमां थयो छे. आ सिवाय पण, अन्ये,केचित्, अपरे, वदन्ति, आवा सांकेतिक उल्लेखो द्वारा तो तेमणे अनेक पर-दार्शनिकोनो तथा तेमना पाठ-संदर्भोनो हवालो आप्यो छे ज, जेनां रहस्य तो आवा विषयोना खास अभ्यासीओ ज खोली शके. 'स्फटिक' शब्द रत्नजाति माटे प्रसिद्ध छे. अहीं तेओ तेने माटे 'स्फुटिक' शब्द प्रयोजे छे- वारंवार. अने 'युवानी-जुवानी' माटे तेमणे शब्द वापर्यो छे-- "यौवनिका". आ ग्रंथनी हस्तप्रति अमदावादना डहेलाना उपाश्रयना भंडारमा छे, तेम झेरोक्स नकल परनी सिक्कानी छाप जोतां मानी शकाय. वर्षों पूर्वे तेनी नकल में मेळवेली, परंतु क्याथी, कोना मारफते ते कशुं आ क्षणे याद नथी. प्रतिनो प्रारंभ "श्रीगुरुभ्यो नमः" थी थयो छे. मंगलाचरण, प्रस्तावना जेवू कशुं ज नथी. समजी शकाय छे के एकवार रचना करी लीधा पछी तेने आखरी ओप आपवा पूर्वक अधिकृत नकल करवानी थशे त्यारे आ बधी औपचारिकता करी लेवाशे तेवू कर्ताना मनमां होवू जोईए. २३ पत्रनी आ प्रतिमां छठं पा एक बाजुए साव कोलं-लखाण विनानुं ज रह्यं छे, ते बाबत पण ग्रंथकारनी त्वरा तथा व्यस्ततानी तेमज मनमां उभराता जोशीला प्रवाहनी गवाही आपी जाय छे. प्रारंभना बे पत्रोमां हांसिया माटे लीटीओ बे तरफ आंकेली छे, पण पछी तो वगर लीटीए ज लेखन वयं छे. आ ग्रंथनी प्रतिलिपि करवानुं काम खूब धीरज अने निपुणता मागी ले तेवं कष्टसाध्य हतुं. मुनि कल्याणकीर्तिविजयजीने ते सोंपतां तेमणे लांबे गाळे पण ते काम पार पाडी आप्युं छे. तेनुं पुनरवलोकन-संपादन वगेरे करवा पूर्वक आजे ते अत्रे प्रस्तुत करवामां आवे छे. उपाध्याय यशोविजयजीनी कृति पर काम करवा मळे ए. केटलुं बधु संतर्पक अने रोमहर्षक छे, ते वर्णनातीत छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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