Book Title: Anusandhan 2002 07 SrNo 20
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 104
________________ 99 अनुसंधान-२० दिन जिही रात हर षातसुररातबल तरलविवुसिद्धरिवसरलतंडैः चंडकाचारउडुंडभवडंडमैः डमरआखंडरविचरण मंडै ॥ तो मडडमरः अखंडडमडमः चंडडुलचतः मंडधरपतः शत्रुत्रजत निसभभ्रतजतः थंभभयतः उदभभरायतः जगगहतः मयंगरबदरंगतरगमयंगतजयुं मधु धुकतसमधुधमधमकंधधरणवसधरणी ॥१॥ कवि जिनेन्द्रकृत मेवाडको कवित दुहा ॥ मन धर माता भारती, कवियां कौतिक काज । गुणवर्णन मेवाडना, करसुं कोइक काज ॥१॥ देश घणाई देखीया, के वलि सुणीया कांन । मेदपाट सम को नही, देखत होइ हेरांन ॥२॥ छंद हाटकी । नही उन्हो खाणो नही दोझाणो राणा केरो देश जव मक्की रोटा छोटा खोटा खारी खाय हमेस । लुका सुका आहारी सहू नरनारी काला पहिरण वेस मेवाडे देसे भूले चूके मत करज्यो परवेस ॥१॥ पगपग जिहा माठा काठा भाटा ठोकर लागे ठेस बालकने बुढा सहू नर मूढा भण्या नही लवलेस । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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