Book Title: Antgada Dasanga Sutra
Author(s): Hastimalji Aacharya
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 263
________________ सन्दर्भ सामग्री ] 235} गुणरत्न संवत्सर तप-तालिका महीना | तप व तप की संख्या | तप के दिन | पारणे के दिन | पहला दूसरा तीसरा चौथा पाँचवाँ 15 उपवास 10 बेला 8 तेला 6 चोला 5 पचोला 4 छह छट्ठा सातवाँ आठवाँ 3 सात 3 अठाई नवमाँ 3नव 3दस 3 ग्यारह दसवाँ ग्यारहवाँ बारहवाँ तेरहवाँ चौदहवाँ पन्द्रहवाँ सोलहवाँ 2 बारह 2 तेरह 2 चौदह 2 पन्द्रह 2 सोलह योग 407 73 480 जहा खंदओ तहा चिंतेइ गौतम अणगार को स्कन्धक मुनि की तरह (भगवती शतक 2 उद्देशक 1) चिन्तन करते एकदा-किसी समय, रात्रि के पिछले प्रहर में धर्म जागरणा करते हुए ऐसा विचार किया-मैं पूर्वोक्त प्रकार से उदार तप द्वारा शुष्क एवं कृश हो गया हूँ। मेरा शारीरिक बल क्षीण हो गया, केवल आत्मबल से चलता और खड़ा रहता हूँ। चलते हुए, खड़े होते हुए हड्डियों में कड़-कड़ की आवाज होती है। अत: जब तक मुझमें उत्थान-कर्म-बल-वीर्य-पुरुषाकार पराक्रम है, तब तक मेरे लिये यह श्रेयस्कर है कि रात्रि व्यतीत होने पर प्रात:काल भगवान के समीप जाकर, उनको वन्दन नमन कर, पर्युपासना करूँ, करके स्वयं ही पाँच महाव्रतों का आरोपण करके साधु-साध्वियों को खमाकर, स्थविरों के साथ शत्रुजय पर्वत पर धीरे-धीरे चढ़कर, शिलापट्ट की प्रतिलेखना करके, डाभ का संथारा बिछाकर, अपनी आत्मा को संलेखना से दोषमुक्त करके, आहार-पानी का त्याग कर पादोपगमन संथारा करना तथा उसमें स्थिर रहना मेरे लिए श्रेष्ठ है। (भगवती सूत्र शतक 2 उद्देशक 1)

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