Book Title: Antgada Dasanga Sutra
Author(s): Hastimalji Aacharya
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 293
________________ प्रश्नोत्तर] 265} सजगता के लिए, शिक्षा-दीक्षा दी हो, केश लोचन, गोचरी आदि का ज्ञान दिया हो तथा अंगसूत्रों का अध्ययन कराया हो, इस अपेक्षा से पुनः प्रव्रजित मुण्डित करने की बात संभव है। प्रश्न 62. मुद्गरपाणि यक्ष को अर्जुन के मन की बात कैसे ज्ञात हुई? उत्तर-मुद्गरपाणि यक्ष जो कि प्रतिदिन 6 पुरुष 1 स्त्री की हत्या कर रहा है, उसका मिथ्यादृष्टि होना संभव है। प्रज्ञापना पद 33 के अनुसार वाणव्यन्तर देव मात्र जघन्य 25 योजन उत्कृष्ट संख्यात द्वीप समूह को जान सकते हैं। मुद्गरपाणि यक्ष वाणव्यंतर का ही एक भेद है। जबकि मन की बात जानने में वही अवधिज्ञानी सक्षम है जो क्षेत्र से कम से कम लोक का संख्यातवाँ भाग, काल से कम से कम पल्योपम का संख्यातवाँ भाग जानने वाला हो। यक्ष का अवधिज्ञान/विभंग ज्ञान उक्त कथनानुसार सीमित होने के कारण वह मन की बात जानने में समर्थ नहीं है। ऐसा सम्भव है कि यक्ष आस-पास के पेड़ों में रहा हो। अर्जुनमाली की दुर्दशा देखकर अथवा उसकी पुकार को सुनकर उसके शरीर में प्रवेश कर गया हो, मति-श्रुत अज्ञान से भी यक्ष दूसरों के मन की बात जान सकता है। सामान्यतः हाव-भाव से मनुष्य के मन की बात आज भी संसार में कतिपय अनुभवी प्रकट कर देते हैं। अत: मति-श्रुत अज्ञान के उपयोग से ही अर्जुनमाली के मन के भावों को यक्ष ने जाना होगा, अवधि के उपयोग से नहीं। प्रश्न 63. सागारी संथारा कब, कैसे व किस विवेक से लिया जा सकता है? क्या जीव विराधना जारी रहते सागारी संथारा कर सकता है? उत्तर-सागारी संथारा किसी प्रकार का उपसर्ग आने पर (अकस्मात् और प्राणघातक उपसर्ग) कष्ट बीमारी ऑपरेशन आदि में अथवा प्रतिदिन रात्रि में ग्रहण किया जा सकता है। सागारी संथारे में 1. भूमि प्रमार्जन 2. अरिहंत, सिद्धों की स्तुति (प्रणिपात सूत्र) 3. पूर्वगृहीत व्रतों-दोषों की निन्दना, 4. सम्पूर्ण 18 पापों का 3 करण 3 योग से त्याग 5. चारों प्रकार के आहार का त्याग किया जाता है। उपसर्ग से मुक्ति मिल जाने पर पारने का विकल्प होने से सागारी संथारा कहलाता है। ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र में उल्लेख है कि पानी में जहाज पर अरणक ने सागारी संथारा स्वीकार किया। पानी की विराधना व जहाज पर अग्नि की विराधना जारी रहने पर भी उन्होंने संथारा किया। इससे यह स्पष्ट होता है कि जीव-विराधना जारी रहने पर भी सागारी संथारा लिया जा सकता है। प्रश्न 64.क्या सभी कर्मों का फल बंध के अनुरूप ही भोगना पड़ता हैं या होता है? उत्तर-उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन 4 गाथा 3 में तथा अध्ययन 13वें गाथा 10 में कहा है-“कडाण कम्माण न मोक्खो अत्थि।" अर्थात् किये हुए कर्मों को भोगे बिना छुटकारा नहीं मिलता। यह कथन प्रदेशोदय की दृष्टि से समझना चाहिए अर्थात् बँधे हुए कर्म प्रदेशोदय में आते हैं। किन्तु वेदन (फलदान शक्ति) अनिवार्य नहीं है। भगवती सूत्र शतक 1 उद्देशक 4 में वर्णन है कि बद्ध कर्मों के विपाक में (प्राय: निकाचित को छोड़कर) जीव के परिणामों के अनुसार परिवर्तन होता रहता है। दशवैकालिकसूत्र में उल्लेख हैकि-"तवसा धुणइ पुराणपावगं।" तप से पुराने कर्म नष्ट हो जाते हैं। "भवकोडि संचियं कम्मं तवसा णिज्जरिज्जइ।" अर्थात् तप से करोड़ों वर्षों के संचित कर्म क्षय (निर्जरित) हो जाते हैं। अत: स्पष्ट है बँधे हुए कर्मों को उसी रूप में भोगना अनिवार्य नहीं है। प्रश्न 65. बुलाया आवे नहीं, निमन्त्रण से जावे नहीं यह नियम कहाँ पर लागू होता है? उत्तर-यह नियम स्थानक 'उपासरे' में लागू होता है। कोई स्थानक में आकर अपने घर गोचरी आने का निमन्त्रण देता है तो उस घर को छोड़ना उचित है, किन्तु स्थानक के बाहर यदि भावना व्यक्त करता है तो उसे निमन्त्रण नहीं माना

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