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[अंतगडदसासूत्र
सुदर्शन-माता-संवाद
(तर्ज-मन डोले, मेरा तन डोले.......) सुदर्शन-मन हरषे, मेरा तन तरसे, मैं जाऊँ प्रभु के द्वार रे,
___ पाऊँ दर्शन मंगलकारी......... ।।टेर ।। करुणा सागर जग हितकारी, प्रभुजी आज पधारे। राजगृही के बाहर वन में, जग के भव्य सहारे, हो माता जग के भव्य सहारे, हो माता जग के भव्य सहारे । दर्शन को, पदरज फरसन को,
मैं जाऊँ प्रभु के द्वार रे, पाऊँ......... ||1 ।। माता-मत मचले, वन्दन यही करले, मेरे वत्स सुदर्शन लाल रे,
प्राण हरे अर्जुन माली......।।टेर ।। घट-घट के भावों को जाने, प्रभुजी हैं उपकारी, नमन करे स्वीकार यहीं से, वे प्रभु महिमाधारी, रे बेटा वे प्रभु महिमाधारी। हम आकुल, बेबस व्याकुल,
वे देख रहे सब हाल रे, प्राण..... ।।2।। सुदर्शन-प्रभुजी देखे, मैं नहीं देखू, यह दुविधा है भारी,
दर्शन करवू, वाणी सुन लूँ, हर लूँ मोह खुमारी, हो माता हर लूँ मोह खुमारी। क्यों घर मे रहूँ मैं डर में,
छू चरण मैं अभय विहार रे, पाऊँ.......।।3।। माता-धर्म कार्य में पहला साधन, तन क्यों यों ही हारें ।
दया हमारी कर एकाकी, वल्लभ लाल हमारे, हो बेटा वल्लभ लाल हमारे ।
मैं जननी, तेरी यह पत्नी, सुन पाती दुःख अपार रे, प्राण...।।4।। सुदर्शन-यह तन जिसका पहला साधन, इसीलिये लुट जायें ।
ममता तज कर फिक्र करो मत, दुःख सारे टल जायें, हो माता दुःख सारे टल जायें। प्रभु सहारा, ये लाल तुम्हारा, कर देगा अंत संसार रे, पाऊँ...... ।।5।।