Book Title: Antgada Dasanga Sutra
Author(s): Hastimalji Aacharya
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 304
________________ {276 [अंतगडदसासूत्र सुर-असुरों से जो पूजित हैं, ऋषि मुनियों से जो वंदित हैं। जो तीन लोक के स्वामी हैं, उनकी महिमा का क्या कहना ।। 3 ।। पूजा-निन्दा में सम रहते, नित वीतरागता में रमते । जहाँ समकित दीप जले नित ही, उनकी समता का क्या कहना ।।4।। कोई पूजे देव सरागी को, कोई शीष नमाते भोगी को। अरिहन्त देव ही देव मेरे, देवाधिदेव का क्या कहना ।। 5 ।। गौतम से कहते हैं भगवन्, दृढ़ श्रद्धामय हो यह जीवन । जो शरण में हैं अरिहन्तों के, उनके मंगल का क्या कहना ।।6 ।। ।। ओ विश्व के सभी जन ।। (तर्ज-::-ओ दूर जाने वाले) ओ विश्व के सभी जन, चौरासी लाख योनि । है आज दिन क्षमा का, मुझको क्षमा करोनी-2 ।। टेर ।। भव भव में संग भटके, नाते हुए अनंते । सुत तात मात भ्राता, नारी भी बन सलोनी ।। 1 ।। फँस काम क्रोध मद में, बाँधा जो वैर तुमसे । छल छिद्र कीनो भारी, बोली कठोर वानी ।। 2 ।। उन सारी त्रुटियों का, बदला चुकालो मुझसे । भूलो पुरानी बातें, अब हो चुकी जो होनी ।। 3 ।। कर जोड़ के क्षमा मैं, चाहता हूँ शुद्ध तन से । कर दो क्षमा हृदय से, इतनी दया धरोनी ।। 4 ।। मैंने स्वरूप जाना, गुरुदेव की कृपा से । तुम भी तो “जीत" जागो, हिलमिल गले मिलोनी ।। 5 ।। ॥ये पर्व पर्युषण आया । (तर्ज-::-वीरा रमक झमक हुई आइजो) ये पर्व पर्युषण आया, सब जग में आनन्द छाया रे ।। टेर ।। यह विषय-कषाय घटाने, यह आतम गुण विकसाने । जिनवाणी का बल लाया रे ।। ये पर्व० ।। 1 ।।

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