Book Title: Antgada Dasanga Sutra
Author(s): Hastimalji Aacharya
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 309
________________ प्रत्याख्यान सूत्र 281} (स) दसवाँ पौषध-दसवाँ पौषध-व्रत असणं, पाणं, खाइमं, साइमं का पच्चक्खाण । द्रव्य से-सर्व सावद्य योगों का त्याग, क्षेत्र सेसम्पूर्ण लोक प्रमाण, काल से-सूर्योदय तक, भाव से-दो करण, तीन योग, उपयोग सहित तस्स भंते! पडिक्कमामि, निदांमि, गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। सूचना-जिन्होंने उपवास में प्रासुक जल का सेवन किया है, वे सायंकाल के समय तक इस पौषध को ग्रहण कर सकते हैं। यह कम से कम चार प्रहर का होता है। विधि-पौषध लेने और पारने की विधि सामायिक की विधि के अनुसार ही है। गृहस्थोचित शुभ्र दुपट्टा और चोलपट्टा आदि धारण करके पौषध-व्रत लेना चाहिए। नवकार मन्त्र से लेकर सब पाठ सामायिक ग्रहण करने के अनुसार ही पढ़ने चाहिए। केवल जहाँ सामायिक में करेमि भंते! बोला जाता है वहाँ ऊपर लिखित जो पौषध ग्रहण करना है उस पाठ को बोलना चाहिए। इसी प्रकार पौषध पारते समय जहाँ सामायिक पारने का ‘एयस्स नवमस्स' पाठ बोला जाता है वहाँ नीचे लिखा पौषध पारने का पाठ बोलना चाहिए। पौषध पारने का पाठ ग्यारहवें पौषध-व्रत के पंच अइयारा जाणियव्वा, न समायरियव्वा, तं जहा-अप्पडिलेहिय-दुप्पडिलेहिय सेज्जा संथारए, अप्पमज्जियदुप्पमज्जिय सेज्जा संथारए, अप्पडिलेहिय-दुप्पडिलेहिय उच्चार पासवण भूमि, अप्पमज्जिय-दुप्पमज्जिय उच्चार पासवण भूमि, पोसहस्स सम्म अणणुपालणया तस्स मिच्छा मि दुक्कडं। SAKAAROKARISA

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