Book Title: Antgada Dasanga Sutra
Author(s): Hastimalji Aacharya
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 295
________________ प्रश्नोत्तर] 267} (8) एवन्ता मुनि का जीवन हमें प्रकृति की सरलता, भद्रता, विनम्रता के साथ गुणिषु प्रमोदं की भावना भरता है। (9) राजा श्रेणिक की रानियाँ एवं कोणिक की छोटी माताओं का जीवन सुकुमारता का त्याग कर तपाराधना के साथ धर्म मार्ग में आगे बढ़ने की अभूतपूर्व प्रेरणा प्रदान करता है। प्रश्न 69. पर्युषण के आठ दिनों में अन्तगड़सूत्र ही क्यों पढ़ा जाता है? उत्तर-पर्यषण आत्मगुणों के संचय, संवर्धन एवं रक्षण के पर्व हैं। इन दिवसों में सभी वर्ग के साधकों की धर्म भावना पुष्ट होनी चाहिए। इस हेतु आठ दिवसों में पूर्ण हो सकने वाले तथा आत्मगुण विकसाने की प्रेरणा देने वाले अन्तकृद्दशांग सूत्र का वाचन-विवेचन आवश्यक है। अन्तकृद्दशांग सूत्र में आबाल-वृद्ध, गरीब-अमीर सेठ, राजा, राजरानियाँ, राजकुमार, ज्ञान क्षयोपशम आदि की विविधता वाले सभी साधकों का वर्णन है। सभी ने उसी भव में सर्व कर्मों का क्षय कर मुक्ति प्राप्त की, अत: जीवन के सर्वोच्च लक्ष्य दु:ख-मुक्ति, शाश्वत सुख-प्राप्ति की प्रबल प्रेरणा भी इस शास्त्र से सभी लोगों को प्राप्त होती है। अत: यह कहा जा सकता है कि ज्ञान-दर्शन-चारित्र-तप इन आत्मिक गुणों को पुष्ट करने वाला होने से अन्तकृद्दशांग सूत्र पर्युषण पर्व के दिवसों में पढ़ना अनिवार्य एवं उपादेय है। विशेष ज्ञानी कहे, वही प्रमाण जानना चाहिये। प्रश्न 70. चम्पानगरी कैसे बसाई गई ? उत्तर-मगधाधिपति महाराज श्रेणिक के वृद्ध होने पर भी अपने ज्येष्ठ पुत्र कोणिक को राज्य पद पर अभिषिक्त नहीं करने से, राज्य की अमूल्य वस्तुएँ, देवनामी हार व सिंचानक हाथी, हल्ल-विहल्लकुमार को दे देने से राज्य लिप्सा के तीव्राभिलाषी कोणिक ने (अपने दस भाइयों विमाता के ज्येष्ठ पुत्रों) से षड्यन्त्र करके महाराज श्रेणिक को पिंजरे में डाल कर बन्दी बना दिया। स्वयं मगधाधिपति बन गया, और दस भाइयों को अलग-अलग राज्य के हिस्से बाँट दिये, राजचिह्नों से सुशोभित होकर अपनीपूज्य मातेश्वरी चेलना के पाँव वन्दन के लिये गया । महारानी चेलना ने पिता को बन्दी बनाने वाले पुत्र को देखकर मुँह फेर लिया। इस पर नृप कोणिक ने कहा-'हे माता! क्या तुम अपने पुत्र को राजा देखना नहीं चाहती?' इस पर माता ने व्यंग्य में कहा-'जिस पुत्र ने अपने पूजनीय पिताजी, जिन्होंने उसे जीवनदान दिया था, उनको ही बन्दी बनाकर राज्य लक्ष्मी हड़प ली, उसका कौन माँ आदर करेगी?' कोणिक के पूछने पर कि पिताजी ने मुझे जीवन-दान कैसे दिया, चेलना ने अपने दोहद (पति के माँस खाने की इच्छा) उत्पन्न होने की घटना सुनाई। जन्मते ही पिता-घातक (दोहद हेतु) समझकर मैंने तुमको उखरड़ी पर फिंकवा दिया। जहाँ पर एक मुर्गे ने तुम्हारी अँगुली नोंच डाली। तुम्हारे पिताजी ने मुझे इसके लिये बहुत उपालम्भ दिया, और लालनपालन के लिये वापस दे दिया। अंगुली में रस्सी पड़ जाने के कारण जब रात्रि में तुम बहुत रोते थे, उस समय तुम्हारे ये ही पिता अपने मुँह में अँगुली का पीप चूसकर बाहर फेंकते और तुमको शान्ति उपजाते थे। अपनी माता के मुँह से यह हृदय द्रवित करने वाला वृत्तान्त सुनकर कोणिक का हृदय भर आया और पूज्य पिताजी के बन्धन काटने के लिये कुल्हाड़ा लेकर कारागृह की तरफ दौड़ा । श्रेणिक ने कोणिक को इस प्रकार आते देखकर सोचा कि यह मुझे मारेगा। इससे यही अच्छा है कि मैं पहले ही मर जाऊँ। अतः अपनी अंगूठी में जड़ित हीरे की कणी को चूसकर श्रेणिक काल धर्म को प्राप्त हो गया। यह दृश्य देखकर कोणिक शोक विह्वल होकर भग्नचित्त हो गया । वह अपने पूज्य पिताजी के गुणों का ध्यान करके रोने लगा। राज्य मन्त्री आदि के समझाने पर भी उसका हृदय हल्का नहीं हुआ। बाहर घूमने पर शोक से कुछ निवृत्त होता, परन्तु राज्य सिंहासन पर बैठते ही पिताश्री की याद सताने लगती। (निरयावलिया सूत्र)

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