Book Title: Antgada Dasanga Sutra
Author(s): Hastimalji Aacharya
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 274
________________ {246 [अंतगडदसासूत्र 3. सूत्र 35 (पृष्ठ 1102) तएणं से मेहे अणगारे बारस भिक्खु पडिमाओ सम्म काएणं फासेत्ता..... इन तीन सूत्रों से सुस्पष्ट है कि (1) 11 अंगों का अध्ययन (2) 12 वर्ष की संयम-यात्रा (3) भिक्षु की बाहर प्रतिमाओं की सम्यक् आराधना। ज्ञाताधर्मकथांग अध्ययन 8 मल्ली भगवती, सूत्र 72 (पृष्ठ 1145) पूर्व भव में महाबल आदि 7 कुमारों ने महाविदेह क्षेत्र में दीक्षा ली। तएणं से महब्बले जाव महया इड्डीए पव्वइए एक्कारसअंगाई बहूहिं चउत्थ......। सूत्र 72 (पृष्ठ 1146) तएणं से महब्बल पामोक्खा सत्त अणगारा मासियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरंति जाव एगराइयं भि. उव.। महाविदेह क्षेत्र में ग्यारह अंग का अध्ययन करने वाले महाबल प्रमुख उन सात अणगारों ने भिक्षु प्रतिमा की सम्यक् आराधना की। अंतगड़दसाओ (पृष्ठ 1316) प्रथम वर्ग, प्रथम अध्ययन सूत्र 2 पृष्ठ 1316 एक्कारस अंगाई... सूत्र 2 (पृष्ठ 1317) तहा बारस भिक्खुपडिमाओ उवसंपज्जित्ताणं....बारस वरिसाई परियाए। गौतम कुमार ने 12 वर्ष संयम, म्यारह अंग का अध्ययन करते हुए बारह भिक्षु प्रतिमा की आराधना की। शेष 9 अध्ययन भी इसी प्रकार, दूसरे वर्ग के 8 अध्ययन में संयम पर्याय 16 वर्ष की है। अंतगड़ वर्ग 6 अध्याय 1 सूत्र 12 (पृष्ठ 1332) सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जइ सेसं जहा खंदगस्स......सोलस वासाई..... मकाई अणगार 11 अंग 16 वर्ष संयम (खंधकजी की भोलावण) (खंधकजी की 12 भिक्षु प्रतिमा की आराधना अंतिम बिंदु में) अर्जुन अणगार को छोड़ 15 ही अध्ययन में भोलावण है। 5. भगवती सूत्र शतक 2 उद्देशक 1 खंधकजी सूत्र 92 (पृष्ठ 451) मासियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ता....... (पृष्ठ 462) मासियं भिक्खुपडिमं अहासुत्तं.....आराहेत्ता। सूत्र 94 (पृष्ठ 464) सामाइयमाइयाहि एक्कारस अंगाई अहिज्जित्ता बहुपडिपुण्णाई दुवालसवासाई सामण्णपरियागं पाउणित्ता 12 वर्ष संयम 11 अंग के साथ भिक्षु प्रतिमा आराधना।। महाविदेह क्षेत्र, मध्य के 22 तीर्थङ्कर अथवा अंतिम तीर्थङ्कर सभी के शासन में 11 अंगों का अध्ययन व 20 वर्ष से कम संयम पर्याय में भिक्षु प्रतिमा की आराधना स्पष्ट कर रही है कि भिक्षु प्रतिमा के लिए परिहार विशुद्धि तप के समान 20 वर्ष की संयम पर्याय व 9वें पूर्व की तीसरी आचार वस्तु के ज्ञान की अनिवार्यता नहीं है। जो यह कहा जाता है कि जो आगम व्यवहारी है, इस प्रकार की आज्ञा दे सकते हैं। वह भी ठीक नहीं क्योंकि आगम व्यवहारी में केवलज्ञानी, मन:पर्यवज्ञानी , अवधि ज्ञानी के साथ 14 पूर्वी, 10 पूर्वी व 9 पूर्वी भी सम्मिलित हैं। जब पूर्व वाले ही प्रतिमा ले सकते हैं, तो यह भी स्पष्ट ही है कि प्रतिमा आराधना के समय टीकाकारों (व्याख्याकारों) द्वारा आगम व्यवहारी होना माना ही गया है-वो अनुज्ञा प्रदान करते हैं। तो ग्यारह अंग के अध्ययन वाले व 20 वर्ष से कम संयम पर्याय वाले प्रतिमा आराधना कर सकते हैं। __अपवाद मार्ग क्वचिद् कदाचित् हो सकता है-अंतगड़दसा 3/3 में गजसुकुमालजी द्वारा सीधे बारहवीं प्रतिमा अंगीकार करना अपवाद मार्ग हो सकता है-पर सारे उदाहरण अपवाद मार्ग के नहीं हो सकते। आगम में एक भी उदाहरण पूर्वधरों की प्रतिमा का नहीं है।

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