Book Title: Antgada Dasanga Sutra
Author(s): Hastimalji Aacharya
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 290
________________ {262 [अंतगडदसासूत्र उत्तर-यह कथन सही नहीं है। आन्तरिक दृष्टि से देखा जाय तो गजसुकुमाल मुनि को महती वेदना सहन करनी पड़ी, इसका मूल कारण “अणेगभव सयसहस्स संचियं कम्म" अर्थात् लाखों भवों पूर्व बाँधे हुए अशुभ कर्मों के कारण उदीरणा के द्वारा तीव्र विपाकोदय हो जाता है। गजसुकुमाल ने महती वेदना को समभावपूर्वक सहन किया, बाहरी दृष्टि से सोमा के परित्याग के कारण से सोमिल का क्रोधित होना व गजसुकुमाल को महती वेदना देना भी सही हो सकता है। बाह्य निमित्त कोई भी बन सकता है, परन्तु दु:खादि उत्पन्न होने का मूल कारण (उपादान) तो स्वकृत कर्म ही है। प्रश्न 50. जघन्य श्रुत आराधना में दर्शन व चारित्र की उत्कृष्ट आराधना सम्भव है अथवा 5 समिति 3 गुप्ति से केवलज्ञान प्राप्त हो सकता है। क्या यह कथन सही है? उत्तर-उक्त कथन सही है। जघन्य श्रुत आराधना (5 समिति 3 गुप्ति) में भी यदि उत्कृष्ट क्षय (पुरुषार्थ) करे तो वह केवली बन जाता है। भगवती सूत्र शतक 25 उद्देशक 6 में वर्णन है कि जघन्य श्रुताराधना रूप 5 समिति 3 गुप्ति वाला बारहवें गुणस्थान को प्राप्त कर लेता है जो अन्तर्मुहर्त में नियमा केवली बन जाता है। भगवती सूत्र शतक 8 उद्देशक 10 में वर्णन है कि जघन्य श्रुत की आराधना करने वाला भी मुक्ति का अधिकारी हो जाता है। मोक्ष में जाने वाले जीव में बारहवें गुणस्थान में समिति गुप्ति का ज्ञान होने पर भी दर्शन व चारित्र आराधना उत्कृष्ट ही होगी। गजसुकुमाल एवं अर्जुन अणगार के वर्णन से भी यह बात पुष्ट होती है। प्रश्न 51. 'मेरा भाई अकाल में ही काल कर गया' वासुदेव श्रीकृष्ण का यह कथन क्या सही है? उत्तर-भगवान अरिष्टनेमि के द्वारा यह कहने पर कि गजसुकुमाल मुनि ने अपना प्रयोजन सिद्ध कर लिया है। तब श्रीकृष्ण ने कहा कि-मेरा छोटा भाई अकाल में ही काल कर गया। श्रीकृष्ण की इस मिथ्या धारणा का बाद में अरिहंत अरिष्टनेमि ने निराकरण कर दिया। जो भी चरम शरीरी नारकी, देवता, युगलिक तथा श्लाघनीय पुरुष होते हैं वे अनपवर्तनीय आयु वाले होते हैं। वे अकाल में मरण को प्राप्त नहीं होते। गजसुकुमाल चरम शरीरी थे, उनके लाखों भवों के कर्मों की निर्जरा करने में सोमिल ने सहायता दी थी। प्रभु ने फरमाया-जिस प्रकार श्रीकृष्ण! तुमने मेरे यहाँ आते हुए रास्ते में वृद्ध पुरुष की ईंट उठाकर सहायता की थी, उसी प्रकार सोमिल ने गजसुकुमाल की मुक्ति में सहायता की है। अत: हे कृष्ण! तुम उस पुरुष (सोमिल) के प्रति द्वेष मत करो। प्रश्न 52. "अभी कृष्ण महाराज के जीव की लेश्या कापोत है।" क्या यह कथन उचित है? उत्तर-यह कथन सही नहीं है, क्योंकि उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन 34 के अनुसार 3 सागर झाझेरी तक की आयु वाले तीसरी नारकी के जीवों में कापोत लेश्या पाई जाती है। जबकि अंतगड़दसासूत्र में स्पष्ट वर्णन है कि श्रीकृष्ण का जीव मरकर तीसरी नरक के उज्ज्वलित नामक नरकावास में जाकर उत्पन्न हुआ, शेष लोकप्रकाश के सर्ग 14 तथा गाथा 172 में वर्णन है कि तीसरी भूमि के सातवें नरकेन्द्र उज्ज्वलित की स्थिति जघन्य 4.6/9 सागरोपम तथा उत्कृष्ट 6.1/9 सागरोपम की है। अत: उज्ज्वलित नरकावास में कापोत लेश्या नहीं होकर नील लेश्या पाई जाती है। तीर्थङ्कर की आगति में 5 लेश्या (कृष्ण लेश्या को छोड़कर) होती है। नील लेश्या भी इसमें शामिल है। श्रीकृष्ण का जीव आगामी चौबीसी में बारहवाँ तीर्थङ्कर होगा। तीर्थङ्कर बनने में लगभग 7 सागरोपम का काल बाकी है। श्रीकृष्ण लगभग 7 सागर तक नरक में रहेंगे, इस अपेक्षा से भी श्रीकृष्ण के जीव में तीसरी नारकी में नील लेश्या ही संभव है, कापोत नहीं। प्रश्न 53. वासुदेव बनने वाले किसी भी जीव ने वासुदेव भव तक आयुष्य का बंध अनन्तानुबंधी कषाय के उदय में ही किया है।

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