Book Title: Antgada Dasanga Sutra
Author(s): Hastimalji Aacharya
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 278
________________ { 250 [अंतगडदसासूत्र दूसरी बार नहीं, ऐसा विधान नहीं है। यदि एक घर में दूसरी बार जाना कल्प विरुद्ध होता तो अनाचीर्ण में नित्य पिण्ड की तरह द्वितीय पिण्ड को भी अनाचीर्ण कहते । किन्तु वैसा उल्लेख नहीं है, जैसे कि-उद्देसियं कीयगडं नियागमभिहडाणि य।" दशैवकालिक-अध्ययन 3 गाथा 2। 3. प्राचीन समय में धृति एवं संहनन बल वाले श्रमण निर्ग्रन्थ त्याग-तप की भावना से एक बार ही तीसरे प्रहर में आहार कर स्वाध्याय-ध्यान में लीन हो जाते थे, परन्तु जब से अलग-अलग गोचरी न कर सामूहिक करना और दूसरीतीसरी बार आहार करना प्रारम्भ हुआ, तब से गोचरी जाने का काल भी दूसरी-तीसरी बार हो गया हो, ऐसा सम्भव है। 4. तपस्वी सन्तों के तप-पारणक में भिक्षा के लिये दूसरी तीसरी बार जाने का उल्लेख भी आगमों में मिलता है। 5. परम्परा की बातों को परम्परा के नाम से ही कहें तो किसी की लघुता प्रकट न हो। हर परम्परा के सन्त आत्मार्थी और त्यागी रहे हैं। वे आहार-प्राप्ति के लिये मर्यादा की उपेक्षा करें ऐसा नहीं माना जा सकता। ऐसी स्थिति में श्रावक-श्राविकाओं को नियम के लिये प्रेरित करना और शास्त्र के अनुवाद में किसी की न्यूनता बताना उचित नहीं है। अत: नहीं चाहते हुए भी स्पष्टीकरण के रूप में इतना लिखना पड़ रहा है, जो ज्ञातव्य है। प्रश्न 23. जैसे अपने पुत्र भगवान महावीर स्वामी को देखकर 82 रात्रि तक अपने पेट में रखने वाली माता देवानन्दा ब्राह्मणी के स्तनों में दूध की धारा निकल आई। उसी तरह माता देवकी को अपने पुत्रों को पहली बार मुनि वेश में देखते ही दूध का बहाव क्यों नहीं आया? उत्तर-83वीं रात्रि में जब गर्भ संहरण हुआ तब मेरे चौदह स्वप्न त्रिशला ने हरे, ऐसा स्वप्न देवानन्दा को आया था, इस कारण तथा अन्य भी कुछ कारणों से देवानन्दा को यह अनुमान था कि यह वर्द्धमान मेरा ही पुत्र होना चाहिये, अत: उसे दूध का बहाव आया किन्तु अनीकसेन आदि ये मुनि मेरे पुत्र होने चाहिये, ऐसा देवकी को कोई अनुमान नहीं था, अपितु वह तो पोलासपुर में अतिमुक्तकुमार मुनि द्वारा कहे वचनों को ही झूठा मानने लगी थी, अत: उसे अपने पुत्रों को पहली बार देखकर भी बहाव आना सम्भव नहीं था क्योंकि मातृपन के भाव जागृत नहीं हुए थे। प्रश्न 24. मेरे सहोदर छोटा भाई होगा, यह बात तो देवकी को कृष्ण ने कही, किन्तु उसके दीक्षित होने की बात क्यों नहीं कही? उत्तर-जिस भावना से देवकी ने पुत्र की अभिलाषा की। उसमें कहीं यह बात चिन्ता रूप बनकर रंग में भंग करने वाली न बन जाय, इस विवेक से सम्भव है कृष्ण ने देवकी को उनके दीक्षित होने की बात नहीं की। प्रश्न 25. सोमिल ने गजसुकुमाल मुनि को कष्ट देकर अपने पूर्वभव का बदला लिया, इससे उसे नये कर्मों का बन्ध हुआ या नहीं? उत्तर-बदले में कष्ट देना प्रतिहिंसा है। हिंसा चाहे हिंसा हो या प्रतिहिंसा हो, दोनों ही कर्मों का बन्ध करती हैं। प्रतिरक्षा के लिये की जाने वाली हिंसा भी हिंसा है। (अन्यथा श्रावक को इसका आगार नहीं रखना पड़ता) उससे भी मन्द पापकर्म का बन्ध होता है, तो प्रतिहिंसा के लिये की जाने वाली हिंसा से नये कर्म क्यों न बंधेगे। प्रतिरक्षा के लिये की जाने वाली हिंसा राजनीति में उचित मानी जाती है, परन्तु प्रतिहिंसा तो राजनीति में भी दोष युक्त मानी गई है। जैसे-किसी बालक ने किसी अन्य बालक को अपशब्द कहे हों या किसी अन्यायी ने पुत्र की हत्या कर दी हो, ऐसी अवस्था में यदि अन्य बालक अपशब्द कहने वाले को पुन: अपशब्द कहता है या मृत पुत्र का पिता उस अन्यायी की हत्या करता है तो वह भी दण्डनीय समझा जाता है। अतएव गजसुकुमाल की प्रतिहिंसा करने वाले सोमिल को भी पाप बँधा, यह मानना चाहिये।

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