Book Title: Antardvando ke par Author(s): Lakshmichandra Jain Publisher: Bharatiya Gyanpith View full book textPage 6
________________ (iv) रक्षा करने के लिए प्राणोत्सर्ग तक करने का यह प्रथम उदाहरण था। बुद्धिसागर आदि मन्त्रियों के बुद्धि-कौशल से हिंसक और संहारक युद्ध की विभीषिका टल गई। दोनों भाईयों के लिए दृष्टि-युद्ध, जल-युद्ध और मल्ल-युद्धये तीन युद्ध निर्धारित हुए और इन युद्धों के परिणाम पर ही हार-जीत का निर्णय हुआ। विश्व-इतिहास में सम्भवतः ऐसे निर्णायक अहिंसक युद्ध का दृष्टान्त अन्यत्र नहीं मिलता। इसे हम विश्व में प्रथम अहिंराक युद्ध कह सकते हैं। ___ उस क्षण बाहुबली के मन में अधिकार ही कर्तव्य बन गया था। उन्होंने दृष्टियुद्ध और जल-युद्ध में विजय प्राप्त करली थी, कितु मल्ल-युद्ध शेष था। वह अन्तिम और निर्णायक युद्ध था। दोनों भ्राताओं में मल्ल-युद्ध हुआ। दोनों ही मल्ल-विद्या के मजे हुए खिलाड़ी थे। बाहुबली भरत पर छाते गए, उन्होंने फुर्ती से भरत को दोनों हाथों से उठा लिया। चाहते तो जमीन पर दे मारते, किन्तु नहीं, उन्होंने धीरे से भरत को उतारा और विनय से उच्च आसन पर खड़ा कर दिया। इस प्रकार उन्होंने अपने कर्तव्य का पालन किया। अब कर्त्तव्य ही उनके लिए अधिकार बन गया। भरत चक्रवर्ती थे। तीनों युद्धों में पराजय उनका सार्वजनिक अपमान था। सत्ता की रक्षा करना शासन का अधिकार है, औचित्य का विवेक उसमें बाधक नहीं बनता। वहाँ अधिकार की रक्षा करना ही कर्तव्य है। इसी भावनावश भरत ने बाहुबली के ऊपर चक्र चला दिया। बाहुबली के तन को तो चोट नहीं लगी, पर मन को चोट पहुंची। जनता ने भरत के इस कृत्य की निन्दा की, क्योंकि उसने एक चक्रवर्ती के अधिकार की दृष्टि से नहीं, सामान्य जन के कर्तव्य की दृष्टि से इस घटना को लिया। बाहुबली इस घटना से बेहद खिन्न हो गये। खिन्नता की तीव्रता ने उनके मन में वैराग्य भर दिया। जमीन, राज्य,भरत-सभी से अब उन्हें कोई मोह नहीं रहा, वे श्रमण मुनि बन गए। खड़े होकर निर्जन स्थान में अत्यन्त कठोर तप करने लगे, ऐसा तप जो कभी किसी ने नहीं किया। एक वर्ष बीत गया इसी अवस्था में, किन्तु केवलज्ञान (परम ज्ञान) नहीं हुआ। खिन्नता की रेख कि राज्य तो छोड़ दिया, किन्तु दो पर तो अभी भरत की भूमि पर ही खड़े हैं । भरत ने आकर सरल भाव से, विनयसे, क्षमा मांगी तो बाहुबली को उसी क्षण केवलज्ञान हो गया। बाहुबली के मुनि बनने के समय भी भरत ने क्षमा मांगी थी, किन्तु तब बाहुबली के मन में खिन्नता का ज्वारभाटा उमड़-घुमड़ रहा था। धीरे-धीरे खिन्नता का वेग कम होता गया। अब तो खिन्नता की रेख मात्र बाकी थी, भरत द्वारा क्षमा मांगने पर वह भी मिट गई। बाहुबली सर्वज्ञ, सर्वदर्शी हो गए। वे कुछ ही वर्ष बाद शेष कर्मों का नाश करके मुक्त हो गए। वे इस काल में सर्वप्रथम मुक्त हुए।Page Navigation
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