Book Title: Angsuttani Part 02 - Bhagavai
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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६६४
भगवई
गोयमा ! पंचविहउदीरए वा दुविहउदीरए वा अणुदीरए वा । पंच उदीरेमाणे प्राउय-वे णिज्ज - मोह णिज्जवज्जाम्रो । सेसं जहा' नियंठस्स ||
उवसंज्जहण-पदं
५१७. सामाइयसंजए णं भंते ! सामाइयसंजयत्तं जहमाणे किं जहति ? किं
उवसं पज्जति ?
गोयमा ! सामाइयसंजयत्तं जहति । छेदोवद्वावणियसंजय वा, सुहुमसंपरागसंजयं वा, संजमं वा, संजमासंजमं वा उवसंपज्जति ॥
५१८. छेश्रोवट्ठावणिए - पुच्छा ।
गोमा ! छेोवद्वावणियसंजयत्तं जहति । सामाइयसंजयं वा, परिहारविसुद्धियसंजयं वा, सुहुमसंपरागसंजयं वा प्रसंजमं वा, संजमासंजमं वा उवसंपज्जति ॥ ५१६. परिहारविसुद्धिए - पुच्छा ।
गोयमा ! परिहारविसुद्धियसंजयत्तं जहति । छेदोवट्ठावणियसंजयं वा असंजमं वा उवसंज्जति ॥
५२०. सुहुमसंपराए – पुच्छा ।
गोयमा ! सुहुमसंप रायसंजयत्तं जहति । सामाइयसंजयं वा, छेत्रोवद्वावणियसंजयं वा, ग्रहखायसंजयं वा असंजमं वा उवसंपज्जइ ॥
५२१. अहक्खायसंजए - पुच्छा ।
गोयमा ! ग्रहक्खायसंजयत्तं जहति । सुहुमसंपरागसंजयं वा, प्रसंजमं वा, सिद्धिगति वा उवसंपज्जइ ॥
सण्णा-पदं
५२२. सामाइयसंजए णं भंते! किं सण्णोवउत्ते होज्जा ? नो सण्णोवउत्ते होज्जा ? गोयमा ! सण्णोवउत्ते जहा' वउसो । एवं जाव परिहारविसुद्धिए । सुहमसंपराए ग्रहक्खाए य जहा पुलाए ।
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आहार पदं
५२३. सामाइयसंजए णं भंते! किं प्राहारए होज्जा ? प्रणाहारए होज्जा ? जहा पुलाए । एवं जाव सुहुमसंपराए । अहक्खायसंजए जहा ' सिणा ॥
१. भ० २५।४०१ ।
२. उपसंपत्तिप्रसङ्ग सर्वत्रापि भावप्रत्ययलोपो
दृश्यते ।
३. भ०/४१० ।
४. भ० २५।४०६ ।
५. भ० २५।४११ ।
६. भ० २५/४१२ ।
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