Book Title: Angsuttani Part 02 - Bhagavai
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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१.२
८।४८६
७।२१२,२१३
७।११४ ७।२१ श६७
१२॥५४ राय०सू०२७५ राय सू०६२-६५
१४।१७,१८ १३।१२४
एवं जहा वेयणिज्जेण समं भणिया तहा पाउएण वि समं भाणियव्वं ।
८।४८८ एवं जहा सत्तमसए अण्णउत्थियउद्देसए जाव से
१८।१३४,१३५ एवं जहा सत्तमसए दुस्समउद्देसए जाव अपरिया
८४२२ एवं जहा सत्तमसए पढमउद्देसए जाव से १०।१४ एवं जहा सदुद्देसए जाव निव्वुडे नाणे केवलिस्स १।१२४ एवं जहा सुत्तस्स तहा दुब्बलियवत्तव्वया भाणियव्वा, बलियस्स जहा जागरस्स तहा भाणियव्वं जाव संजोएत्तारो
१२।५६ एवं जहा सरियाभस्स अलंकारो तहेव जाव चित्तं ६।१६० एवं जहा सूरियाभो
१६॥६०-६३ एवं जहेव नेरइयाणं नवरं देवे
१४११६,२० एवं जहेव भासा
१३।१२६ एवं जहेव विजयगाहावई नवरं सव्वकामगुणिएणं भोयणेणं पडिलाभेइ सेसं तं चेव जाव चउत्थं १०३६-४४ एवं जहेव विजयस्स नवरं ममं विउलाए खज्जगविहीए पडिलाभेस्सामीति तुटे सेसं तं चेव जाव तच्चं
१५॥३२-३७ एवं जहेव विज्जाचारस्स नवरं तिसत्तखुत्तो
२०१८५ एवं जहेव सक्कस्स जाव तए
१४।२५ एवं जाव अलोए
११।१०८ एवं जाव उत्तर
१११११० एवं जाव भावओ
८.१८८ एवं जाव भावओ
८।१६१ एवं जाव मणपज्जवनाण
है।३१ एवं जाव लोए
११११०८ एवं जाव से
१३।१५६ एवं जाव हुंडे
१४।८१ एवं जोगो, उवयोगो, सघयणं, संठाणं, उच्चत्तं, आउयं च एयाणि सव्वाणि जहा असोच्चाए तहेव भाणियव्वाणि
६।५८-६३
१०२५-३०
१५।२५-३०
२०१८१ १४।२२ ११।१०८ ११।११० ८।१८८ ८.१६१
६।३१ ११।१०८ ओ०सू०१५० ठा०६।३१
९।३६-४१
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