Book Title: Angsuttani Part 02 - Bhagavai
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 1142
________________ २।१६ ६।१६७ १५।६८ ७।१६० ७१८१ १५।२४,४७,६७ १५२३ ५।६२ १२।२१४ ३।२५३ १६।९१ . १५१८६ १५॥१८६ ८.५० ११११३४ निरुद्धभवपवंचे जाव निट्रिय० निसंते जाव अभिरुइए निस्सिरामि जाव पडिहयं निस्सीला जाव उववन्ता निस्सीला जाव निप्पच्चक्खाण नीय जाव अडमाणे नीय जाव अण्णत्थ नेरइयाउयं वा जाव देवा उयं नोपाया जाव नोआयाति पईणवाया इ वा जाव संवट्टयवाया पउमसरं जाव पडिबुद्ध पंक जाव उव्वट्टित्ता पंचमाए जाव उव्वट्टित्ता पंचिदियओरालिय जाव परिणए पंचिदियसरीरे जाव ससि० पकरेइ जाव अणुपरियट्टइ पकरेति जाव देवाउयं पकरेति जाव देवाउयं पगइभद्दए जाव विणीए पगइभद्दए जाव से णं पगइभद्दयाए जाब विणीययाए पगिज्झिय जाव आयावेमाणे पगिज्झिय जाव विहरइ पगिज्भिय जाव विहरित्तए पच्चक्खाणीणं जाव विसेसाहिया पज्जत्तसंखेज्ज जाव जे पज्जत्ताअसण्णि जाव गतिरागति पज्जत्ता जाव करेज्जा ०पज्जत्ता जाव जोणिए पज्जत्तासुहुमपुढविकाइय जाव परिणया पज्जवासणयाए जाव गहणयाए पडिचोइज्जमाणे जाव निप्पट्ठ० पडिचोएउ जाव मिच्छं पडिसंवेदेइ जाव से २०१३ ६।१६५ १५।६५,६६ ७।१८१ ७११२१ २।१०६ १५।१६ ५।६२ १२.२११ वृत्ति ; प०१ १६।११ १५।१८६ १५।१८६ ८.५० ओ०सू० १४३ ११४५ ११३५६ ११३६० ११२८८ २०७० १२८८ ३३३ ३।३३ ११३६० ११३६२ ३।१७,५७८,१५५१०४ २।७१ १११७१ १५१८० १५७०,७६ १११५६ ७१५७ २४।६३ २४।३० २४१३३ २४१४१ ८१८ शह७ १५।११६ १५११०० ५१५७ ७।५५,४६ २४१५६ २४।२७ २४१२७ २४१२७ ८।१८ २।३० १५।११६ १५९६ ११४२० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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