Book Title: Angsuttani Part 02 - Bhagavai
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 1146
________________ ८।४३२ १६॥३५ ११।१४२१५।१६७ ११।१८६ १५११४७ १३।११० ८।४३१ १४।३ ११११३५ १११५६ ३।२३१-२३३ ३।२३३-२३६ हा२४१ ११२०० १४४४ १०१५ ११४४ २।१३६ बलमदेणं जाव इस्सरिय० बलवं जाव नि उण बहपडिपूण्णाणं जाव वीइक्ताणं बाहाओ जाव आयावेमाणे बाहाओ जाव विहरइ बाहिरियं जाव पच्चप्पिणंति बितिओ वि आलावगो एवं चेव नवरं वाणारसीए नगरीए समोहणा नेयव्वा रायगिहे नगरे रूबाइं जाणइ पास इ बुझंति जाव अंतं बुझिसु जाव सव्व० बेइंदिया जाव पंचिंदिया भंडं जाव धणे य से अणुवणीए सिया एयं पि जहा भंडे उवणीए तहा नेयव्वं च उत्थो आलावगो-'धणे य से उवणीए सिया' जहा पढमो आलावगो-- 'भंडे य से अणवणीए सिया', तहा नेयव्वो। पढमच उत्थाणं एक्को गमो, बितियतइयाणं एक्को गमो भंते जाव केवली भंते जाव चिटुंति भंते जाव बालपंडियवीरियत्ताए भंते जाव रण्णो भंते जाव से भंते पुच्छा भगवओ जाव पव्वइए भगवओ जाव पव्वइत्तए भगवं जाव एवं भगवं जाव नमंसित्ता भत्ति जाव अब्भुटेइ भवइ जाव दुहा भवसिद्धिए जाव नो भवित्ता जाव नो भवित्ता जाव पव्वइत्तए ५।१३१,१३२ ५।१११ ११३१३ १।१७६,१८० १०७३ ६।१६४;११।१७२,१३।१०८ २।१४७,१४८ १३।१२० १३।११० ३१२० २।५६ ११११४४ १२।७५ ३।७३ ६।१४ १३।११० ५।१३०,१२६ ५।१०६ १।३१२ १११७६,१७७ १०१६५ २०५२ २।१४६ ६।१६७ ६।१६७ २०५७ २१५७ ११।१३५ १२।७४ ३७२ ६।१३ ६।१६७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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