Book Title: Angsuttani Part 02 - Bhagavai
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 1121
________________ ८।२२३ १८।११२ ६।४४-४६ ६।२१,२२ १०१५ नागपखवा प०४ एवं जहा अट्ठमसए ततिए उद्देसए जाव नो १८१४६ एवं जहा अद्वारसमसए छट्टेसए जाव सिय २०।२७ एवं जहा असोच्चाए तहेव जाव केवल एवं जहा आभिणि बोहियनाणस्स वत्तव्वया भणिया तहा सूयनाणस्स वि भाणियव्वा नवरं-सुयनाणावरणिज्जाणं कम्माण खओवसमे भाणियव्वा । एवं चेव केवलं ओहिनाणं भाणियव्वं, नवरं-ओहिनाणावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमे भाणियव्वे । एवं केवलं मणपज्जवनाणं उप्पाडेज्जा नवरं-मणपजनवनाणावरणिज्जाणं कम्माणं ख प्रोवसमे भाणियव्वो ६।२३-२८ एवं जहा इंदादिसा तहेव निरवसेसं भाणियव्वं जाव अद्धासमए ११४१०० एवं जहा इंदियउद्देसए पढमे जाव वेमाणिया जाव तत्य य जे ते उवउत्ता ते जाणंति, पासंति, आहारेति । से तेणट्रेणं निक्खेवो भाणियवो १८६६-७१ एवं जहां उसभदत्तो तहेव पव्वइओ नवरं पंचहि पुरिससएहिं सद्धिं तहेव जाव ६२१४,२१५ एवं जहा ओववाइए अम्मडस्स वत्तव्वया जाव १४।११०-११२ एवं जहा ओववाइए कूणिओ जाव निगच्छइ हा२०६ एवं जहा ओववाइए जाव आराहगा १४।१०७-१०६ एवं जहा ओववाइए तहेव भाणियव्वं जाव आलोयं हा२०४ एवं जहा कालासवेसियपत्तो तहेव भाणियव्वं जाव सव्व० ६।१३३-१३५ एवं जहा कोहव पट्टे तहेव जाव अणु परियट्टइ १२।५६ एवं जहा खंदए जाव जओ १५।१५७ एवं जहा खंदए जाव से तेणट्रेणं जाव नो असरीरी १६३.४ एवं जहा खंदओ जाव एवं ७।२०३ एवं जहा छट्ठसए जाव नो १६१५२ एवं जहा छ? पए तहा अयोकवल्ले वि जाव महापज्जवसाणा १६१५२ एवं जहा जीवाभिगमे तिविहे देवपुरिसे अप्पाबहुयं जाव जोतिसिया १२।१६८ एवं जहा जीवाभिगमे बितिए नेरइयउद्देसए १३१४५ ६।१५०,१५१ ओ० सू० ११८-१२० ओ० सू० ६६ ओ० सू० ११५-११७ ओ० सू० ६४ ११४३१-४३३ १२।२२ २॥३८ २।११,१२ २०६८ ६।४ जी० ३; भ० वृत्ति जी०३; भ० वृत्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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