Book Title: Angsuttani Part 02 - Bhagavai
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 1122
________________ १३।१६६ १३।१५० १११६३ १६।८७ ११।१७८ ८।४३६ ८।४३५ ३।१६२ ३।१६६ ३३३ १६।८६ २।१८७; ओ० सू० ५२ ८।४१७ ८।४१६ १२।२०२ १३१५०,५१ १२।३३ १२।२०१ १०।३,४ ४।१३६ ८४२१ ८।४२० २५।३५६,३६० २५।३५६,३५७ जी० ३; भ० वृत्ति एवं जहा तइयसए च उत्थुढेसए जाव अस्थि एवं जहा तइयसए पंचमुद्देसए जाव नो एवं जहा तामली जाव सक्कारेइ एवं जहा तित्यगरमायरो जाव एवं जहा तुंगिउद्देसए जाव पज्जुवासंति एवं जहा तेयगसरीरस्स अंतरं तहेव एवं जहा तेयगस्स संचिट्ठणा तहेव एवं जहा दवियाया कसायाया भणिया तहा दवियाया जोगाया भाणियव्वा एवं जहा दसमसए जाव नामधेज्जेत्ति एवं जहा नवमपए उसभदत्तो जाव भविस्सइ एवं जहा नाणावरणि नवरं दंसणनामं घेतव्वं जाव दंसण० एवं जहा नियंठस्स बत्तव्वया तहा सिणायस्स वि भाणियव्वा जाव सिणाए एवं जहा नेरइयउद्देसए जाव एवं जहा पंचमसए परमाणपोग्गलवत्तव्वया जाव अणगारेणं एवं जहा पढमं पारणगं नवरं एवं जहा पढमसए असंवुडस्स अणगारस्स जाव अणुपरियट्टइ एवं जहा पढमसए चउत्थे उद्देसए तहा भाणियव्वं जाव अलमत्थ एवं जहा पढमसए छटद्देसए जाव नो एवं जहा पढमसए नवमे उद्देसए तहा भाणियव्वं एवं जहा बारसमसए पंचमुद्देसे जाव कम्मो एवं जहा बितियसए अत्थिकायउद्देसए जाव उवओगं एवं जहा बित्तियसए जाव तिविहाए एवं जहा बितियसए नियंठद्देसए जाव अडमाणे एवं जहा रायपसेणइज्जे चित्ते जाव चक्खुभूए एवं जहा रायपसेण इज्जो चित्तो एवं जहा रायप्प सेणइज्जे जाव अट्ट सएणं एवं जहा रायप्पसेण इज्जे जाव खुड्डियं १८।१६२-१६५ ११।६६ ५।१५७ ११॥६४ १२।२२ ११४५ ७।१५६,१५७ १७१५१-५४ ७।१६५ २०।२१,२२ ११२००,२०६ १।२७७-२८० ११४३६ १२।११६,१२० १३१५६ ६।१४६ १५।६-१२ १८१४० १८१२२१ ६।१८२ ७.१५७,१५८ २।१३७ २।९७ २।१०६,१०७ राय०सू०६७५ राय०सू०६४५ राय०सू०२७६ राय०सू०७७२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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