Book Title: Anekant 1954 03
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jugalkishor Mukhtar

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Page 11
________________ श्रीबाहुबलीकी आश्चर्यमयी प्रतिमा [ आचार्य श्रीविजयेन्द्रसूरि ] श्रवणबेलगोल नामके ग्राम में अतिविशाल, स्थापत्यकलाकी दृष्टिसे श्रद्भुत एक मनुष्याकार मूर्ति है, जो श्रीबाहुबलीकी है यह मूर्ति पर्वतके शिखरपर विद्यमान है और पर्वतकी एक बृहदाकार शिलाको काटकर इसका निर्माण किया गया है। नितान्त एकान्त वातावरण में स्थित यह तपोरत प्रतिमा मीलों दूरीसे दर्शकका ध्यान अपनी चोर आकृष्ट करती है। श्रवणबेलगोल गांव मैसूर राज्यमें मैसूरसे ६२ सिंकेरी स्टेशनसे ४२, हासनशहर से ३२ और चमरायपट्टनसे ८ मीलकी दूरीपर है। इसके पासही हलेबेलगोल और कोडी बेलगोल नामक गाँव हैं, उनसे पृथक् दर्शाने के लिए ही इसे श्रमण अर्थात् जैनसाधुत्रोंका बेलगोल कहा जाता है । बेलगोल कन्नड़ भाषाका शब्द है और इसका अर्थ है : श्वेत सरोवर । इस स्थानपर स्थित एक सरोवरके कारण ही सम्भवतः यह नाम पड़ा है। इस सरोवरके उत्तर और दक्षिण में दो पहाड़िवाँ हैं और उनके नाम क्रमशः चन्द्रगिरि और विंध्यगिरि है | इस विंध्यगिरिपर चामुण्डरायने बाहुबली अथवा भुजबलीकी - जिनका लोकप्रसिद्ध नाम गोम्मटस्वामी या गोम्मटेश्वर है- विशाल प्रतिमाका निर्माण कराया । यह मूर्ति पर्वतके चारों ओर १५ मीलकी दूरीसे दिखाई देती है और चन्नरायपट्टनसे तो बहुत अधिक स्पष्ट हो जाती है। इस विशाल प्रतिमाके अासपास बादमें चामुण्डरायका अनुकरण करके वीर-पाण्ड्य के मुख्याधिकारीने १४३२ ई० में कारक मूवी २२ मीलमें गोम्मटेश्वरकी दूसरी मूर्ति बनवाई। कुछ काल बाद प्रधान तिम्मराजने वेणूरमूडी १२ मील और श्रवणबेलगोलसे १६० मील में सन् १६०४ ई० में गोम्मटेश्वरकी उसी प्रकारकी एक और प्रतिमा निर्मित करवाई। इन तीनोंके निर्माणकाल में अन्तर होनेपर भी तीनों एक ही सी हैं। इससे जैनकलाकी एकनियम-बद्धता और अविच्छिन्न प्रवाहका परिचय मिलता है । प्रतिमा ये प्रतिमाएँ संसार के आश्चर्योंमेंसे हैं। श्री रमेशचन्द्र मजूमदारके विचारसे तो यह प्रतिमाएं विश्वभर में अद्वितीय Jain Education International हैं | श्रवणबेलगोलवाली प्रतिमाकी ऊंचाई २७ फीट है। इसके विभिन्न अंगों की मापसे इसकी विशालताका अनुमान किया जा सकता है। चरणसे कानके अधोभाग तक २० ०" कानके अधोभागसे मस्तक तक ६-६” चरणकी लम्बाई ३०" चरणके अग्रभागकी चौड़ाई चरणका अंगूठा छातीकी चौड़ाई ४-६७ २१-३" २६-० यह हलके भूरे प्रोनाइट पत्थरके एक विशाल खण्डको काटकर बनाई गई है और जिस स्थानपर स्थित है, वहीं पर ही निर्मित की गई थी। कारकल वाली प्रतिमा भी उसी पथरकी है और उसकी ऊँचाई ४२ फीट है, अनुमानतः यह २१७४ मन भारी है। इन विशालकाय प्रतिमाओं में वेणूर वाली प्रतिमा सबसे छोटी है, इसकी ऊंचाई ३७ फीट है । कलात्मक दृष्टिसे तीनों एक होनेपर भी वेणूरकी प्रतिमाके कपोलोंमें गड्ढेसे हैं जो गंभीर मुस्कराहटकासा भाव लिए हैं। सम्भवतः उसके प्रभावोत्पादक भावमें कुछ न्यूनता आ गई है। श्रवणबेलगोलकी प्रतिमा तीनोंसे सर्वाधिक प्राचीन अथवा विशाल ही नहीं है किन्तु ढालू पहाड़ीकी चोटी पर स्थित होनेके कारण इसके निर्माण में बड़ी कठिनाइयोंका सामना करना पड़ा होगा। यह मूर्ति उत्तराभिमुख सीधी खड़ी है और दिगम्बर है। जांघोंसे ऊपरका भाग बिना किसी सहारेके है उस स्थल तक वह बरमीकसे अच्छादित है। जिसमेंसे सांप निकलते प्रतीत होते हैं। उसके दोनों पैरों और भुजाओंके चारों ओर माधवी लबा लिपटी हुई है और लता अपने अन्तिम तिरों पर पुष्प गुच्छोंसे शोभित है। मूर्तिके पैर एक विकसित कमल पर स्थित हैं । इस प्रतिमाके निर्माता हैं शिल्पी अरिष्टनेमि । उन्होंने प्रतिमा निर्माण में अंगों का निर्माण ऐसे नपे तुले ढंग से किया है कि उसमें किसी प्रकारका दोष निकाल सकना सम्भव नहीं है। सामुद्रिक शास्त्रमें जिन अंगोंका दीर्घ और बड़ा होना सौभाग्य-सूचक माना जाता है वे अंग वैसे ही हैं; For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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