Book Title: Anekant 1954 03
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jugalkishor Mukhtar

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Page 15
________________ किरण १०] गरीबी क्यों? [३१५ तीन करोड़ आदमियोंमें ही बांटे तो भी दस-दस रुपए १. अश्रम-बहुतसे लोग श्रम करनेके योग्य होने हिस्सोंमें पायेंगे इससे भी गरीबी अमीरीमें तब्दील नहीं पर भी श्रम नहीं करते । इसलिए उनसे जो सुख-सुविधा हो सकती। तब सम्पत्ति दानयज्ञमें हर साल दस बीस या सुख-सुविधाका सामान पैदा हो सकता है वह नहीं हो करोड रुपया पानेसे भी क्या होगा? सकता है वह नहीं हो पाता । बालक और वृद्धोंको छोड़ ___ जो लोग दानके द्वारा गरीब देशको अमीर बनाना दिया जाय तो भी इस श्रेणी में कई करोड़ आदमी पाये चाहते हैं वे अर्थ शास्त्रकी वर्णमाला भी नहीं जानते ऐसा जाते हैं। कह देना अपमान जनक होगा, जो लोग विचारकतामें नहीं (क)-समाजकी कोई सेवा न करने वाले युवक संस्कारमान्य यश प्रतिष्ठामें ही बड़प्पन समझते हैं वे इसे साधुवेषी, जो लाखोंकी संख्यामें हैं। वे सिर्फ भजन पूजा छोटे मुंह बड़ी बात समझेगे, कुछ लोग इसे धृष्टता कहेंगे करते हुए आशीर्वाद देते हुए मुफ्त में खाते हैं। इसलिए यह बात न कहकर इतना तो कहना चाहिए कि ' (ख)-भिखारी काम करनेकी योग्यता रखते हुए भी ये लोग अर्थशास्त्रके मामले में देशको काफी गुमराह कर किसी न किसी बहानेसे भीख माँगते है। इनसे भी कोई रहे हैं न वे गरीबीके कारणोंकों इंट कर उसका निदान उत्पादन नहीं होता। कर पा रहे हैं न उसका इलाज। . (ग)-पैत्रिक सम्पत्ति मिल जानेसे, या दहेज प्रादिमें सम्पत्ति मिल जानेसे जो पड़े पड़े खाते हैं और कुछ उत्पादस कारण दन नहीं करते। ऐसे लोग भी हजारोंकी संख्यामें हैं। शोषणका प्रत्यक्ष परिणाम विषम वितरण भी गरीबी (घ)-घरमें चार दिनको खानेको है, मजदूरी क्यों का कारण है, पर यह एक ही कारण है, वह भी इतना करें, इस प्रकारका विचार करने वाले लोग बीच-बीचमें बड़ा नहीं कि अन्य कारण न हों तो अकेला यही कारण काम नहीं करते, इससे भी उत्पादन कम होता है। मजदूर देशको गरीब बनादे। विषम वितरण और शोषण अमे संगठन करके अधिक मजदूरी ले लेते हैं और फिर कुछ रिकामे हाने पर भा अमारका ससारका सबस बड़ा धन दिन काम नहीं करते। वान देश है। इसलिए सिर्फ गरीबीके लिए इसी पर सारा (ङ)-चाटुकार चापलूसी करके कुछ मांगने वाले दोष नहीं मडा जा सकता। हाँ! कुछ कारण इसके लोग भी मुफ्तखोर हैं। राजाओंके पास ऐसे लोग रहते हैं प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष परिणाम स्वरूप अवश्य हैं। या रहते थे जो हुजूरकी जय हो श्रादि बोल कर हुजूरको खैर ! हमें देशकी और व्यक्तिकी गरीबीके सब खुश करके चैनसे खाने पीनेकी सामग्री पा जाते हैं। कारणों पर विचार करना है और उनसे जितने कारण यद्यपि इन मुसाहितोंकी चापलूसोंकी टोलियाँ कम होती दर हो सकें दर करना है। और यह भी सोचना है कि जाती हैं पर अभी भी हैं। गरीबीके किस कारणको दूर करनेका क्या परिणाम होगा। इस प्रकार कई करोड आदमी हैं जो कोई उत्पादन गरीबीके दस कारण हैं श्रम नहीं करते। अगर ये काममें लगें तो देशकी सुख१. प्रश्रम (नोशिहो) सम्पत्ति काफी बढ़ जाये। २. श्रमानुपलब्धि (शिहोनोशिनो) २. श्रमानुपलब्धि-श्रम करनेकी तैयारी होने पर ३. कामचोरी (कज्जो चुरो) भी श्रम करनेका अवसर नहीं मिलता। इस बेकारीके ४. असहयोग (नोमाजो) कारणसे काफी उत्पादन हकता है और देश गरीब रहता ५. वृथोत्पादकश्रम ( नकंजेजशिहो) है। बेकारीका कारण यह नहीं है कि देश में काम नहीं है। ... अनुत्पादक श्रम (नोजेजशिहो) काम तो असीम पड़ा है। पीढ़ियों तक सारी जनता काम.. पापश्रम (पाप शिहो) में जुरी रहे तो भी काम पूरा न होगा. इतना पड़ा है। न ८. अल्पोत्पादक श्रम (येजेज शिहो) अधिकांश लोगोंके पास रहने योग्य ठीक मकान हैं न सब 1. अनुत्पादकार्जन (नोजेज अर्नो) जगह यातायातके लिये सड़कें हैं, न भरपूर कपड़े हैं, न 10. अनुचित वितरण (नोधिन मुरो) घरमें जरूरी सामान है, न सबको उचित शिक्षण मिल Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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