Book Title: Anekant 1954 03
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jugalkishor Mukhtar

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Page 28
________________ ३२८ ] सहित, देवियाँ कुण्डिका सहित प्रदर्शितकी गई हैं। 5द्वारपाल । छतका शिलाखण्ड जिसकी चौकोर वेदीमें कीर्तिमुख प्रदर्शित किये गए हैं । १० – खड्गासन वद्धमान प्रतिमा और उसके ऊपर पार्श्वनाथकी मूर्ति स्तम्भ पर अंकित है । ११ – बड्गासन वद्धमान, चमरेन्द्र तथा छत्रत्रयादि प्रातिहार्यों सहित । १२ शिलापट्ट चौवीस तीर्थंकरों सहित । १३ -- शान्तिनाथ, इसके नीचे दानपति और प्रतिष्ठाचार्य भी प्रणाम करते हुए प्रदर्शित किए गए हैं । १४ - शांतिनाथ १५ - हस्तिपदारूद चतुर्भुज इन्द्र | १७ – सुमतिनाथ | १८ – इन्द्र हाथीपर । १६ – मातंग और सिद्धानी सहित वद्धमान । २० द्वारपाल वीणासहित चारयक्ष, मातंगयक्ष, और शंखनिधिसहित । १६ – पद्मप्रभु । २ – उक्त भवानीमन्दिरसे ५० फीट दक्षिण पूर्वमें नेमिनाथकी मूर्ति है। तथा आदिनाथका मस्तकभाग, एक यक्षी, और वद्ध मानकी मूर्ति है । : ३. दरगाह - यहाँ वद्ध मानकी मूर्तिको लपेटे हुए एक बड़का वृक्ष है जहाँ निम्नलिखित मूर्तियाँ हैं । १ – सिद्धायनी और मातंग यक्षसहित वद्धमान । २ – अम्बिका यक्षी और सर्वाहयक्ष खड्गासन । ३ – चक्रेश्वरी आदिनाथ । ४द्वारपाल । ५ – यक्ष-यक्षी वद्धमान । ६ वद्धमान । ७पार्श्वनाथ | नेमिनाथ । ह― ईश्वर ( शिव ) यक्ष श्रेयांसनाथ | १० - त्रिमुखयक्ष संभवनाथ । ११ - त्रिमुखयक्ष । १२ धर्मचक्र गोमुखयत और चक्रेश्वरी ( आदिनाथ ) ४. शीतलामाता मन्दिर - यहाँ चक्रेश्वरी, गौरीयक्षी, नेमिनाथकी यक्ष यक्षी ( अम्बिका ) । आदिनाथ, वद्ध मानकी खड्गासन मूर्तियाँ, शीतलनाथकी यक्षी माननी, पार्श्वनाथ, किसी तीर्थंकरका पादपीठ, दशवें तीर्थंकरका यक्ष ब्रह्मश्वर, एक तीर्थंकरका मस्तक, तथा श्रनेक शिलापट्ट, जो एक चबूतरे में जड़े हुए हैं उन पर तीर्थंकरोंकी मूर्तियाँ अंकित हैं, एक तीर्थंकर मूर्तिका ऊपरका भाग, जिसमें सुर पुष्पवृष्टि प्रदर्शित है, वद्धमानकी मूर्ति । ५ हरिजनपुर - यह एक नया मन्दिर है जिसकी दीवालों पर नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, सुमतिनाथ और मातंगयत की मूर्तियाँ अंकित हैं । ६ चमरपुरीकी मात—– यह एक प्राचीन टीला है यहाँ इमलीके वृत्तके नीचे जैनमूर्तियाँ दबी हुई हैं । १२ फीट की अनेकान्त Jain Education International [ किरण १० एक विशाल तीर्थंकर मूर्ति चमरेन्द्रों सहित संभवतः व मानकी है । नेमिनाथ और अम्बिकाकी मूर्ति भी है। इस टीलेकी खुदाई होनी चाहिए । यहाँ दशवीं शताब्दीका मंदिर प्राप्त होनेकी सम्भवना है । ७ गंधर्वसेनकामन्दिर - इस मन्दिर में एक प्रस्तरखण्ड पर पार्श्वनाथको उपसर्गके बाद केवलज्ञान प्रालिका दृश्य अंकित है । यह प्रस्तरखण्ड दशमी शताब्दीसे पूर्व और पर गुप्त कालीन मालूम होता है। इसके अतिरिक द्धमान और आदिनाथकी मूर्तियाँ हैं । ८ बालिका विद्यालय — यहाँ दो तीर्थंकरोंकी मूर्तियाँ हैं। उज्जैनमें सिन्धिया ओरियन्टल इन्स्टीटव ट है जहाँ हजारों हस्तलिखित ग्रन्थोंका संग्रह है जिनमें जैनग्रन्थ भी काफी हैं, जिनकी सूची के लिये पुस्तकाध्यक्षको लिखा गया है। यहाँ की मूर्तियोंके फोटो श्रागामी अंकमें प्रकाशित किये जायेंगे । श्रमणका उत्तरलेख न छापना दो महीने से अधिक का समय हो चुका, जब मैंने श्रमा वर्ष ५ के दूसरे अंक प्रकाशित जैन साहित्यका विहंगालोकन नामके लेखमें 'जैन साहित्यका दोषपूर्ण विहंगावलोकन' नामका एक सयुक्तिक लेख लिखकर और श्रमणके सम्पादक डा० इन्द्रको प्रकाशनार्थ दिया था। परन्तु उन्होंने उसे अपने में अभी तक प्रकट नहीं किया, इतना ही नहीं किन्तु उन्होंने ला० राजकृष्णजी को उसे वापिस लिवानेको भी कहा था, और मुझे भी वापिस लेनेकी प्रेरणाकी थी और कहा था कि आप अपना लेख वापिस नहीं लेंगे तो मुझे अपनी पोजीशन क्लीयर (साफ करनी होगी। मैंने कहा कि आप अपनी पोजीशन क्लीयर (साफ) करें, पर उस लेखको जरूर प्रका शित करें । परन्तु श्रमणके दो अंक प्रकाशित हो जाने परभी डा० इन्द्रने उसे प्रकाशित नहीं किया। यह मनोवृत्ति बड़ी ही चिन्त्यनीय जान पड़ती हैं और उससे सत्यको बहुत कुछ श्राघात पहुंच सकता है। हम तो इतना ही चाहते हैं कि जिन पाठकोंके सामने भ्रमणका लेख गया उन्हीं पाठकोंके सामने हमारा उत्तरलेख भी जाना चाहिए, जिससे पाठकोंको वस्तुस्थिति के समझने में कोई गल्ती या भ्रम न हो । - परमानन्द जैन For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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