Book Title: Anekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 8
________________ * ॐ अहम् * वस्ततत्त्व-सघातक विश्वतत्त्व-प्रकाशक HEE नीतिविरोषध्वंसी लोकव्यवहारवर्तकःसम्यक् । परमागमस्य बीज भुवनैकगुरुर्जयत्यनेकान्तः॥ वर्ष ५ किरण १-२ । वीरसेवामंदिर (समन्तभद्राश्रम) मरम्मावा ज़िला महारनपुर फाल्गुन-चैत्रशुक्र. वीरनिर्वाण स. २४६८ विक्रम सं० १६१८-६९ । फरवरी-मार्च १६४२ समन्तभद्र-भारतीके कुछ नमूने +martner श्रीअजित-जिन-स्तोत्र यस्य प्रभावात त्रिदिवच्युतम्य क्रीडाबपि क्षीबमुखारविन्दः । अजेयशक्तिर्मवि बन्धुवर्गश्चकार नामाऽजित इत्यवन्ध्यम ॥६॥ 'जो देवलोकन अवतरित हुए थे श्रार इतने प्रभावशाली थे कि उनकी क्रीडाओ-बाललीलाओं-में भी उनका बन्धुवर्ग-कुटुम्बसमूह-हपन्मित्त-मुम्बकमल होजाता था, तथा जिनके माहात्म्यम वह बन्धुवर्ग पृथ्वीपर अजेय शक्तिका धारक हा-उसे कोई भी जीत नही मका-और (इलिये) उस बन्धुवगेन जिन का 'अजितमा मार्थक अथवा अन्वर्थक नाम रकबा ।' अद्यापि यम्याऽजिनशासनस्य सतां प्रणेतः प्रतिमंगलार्थम । प्रगृह्यते नाम परंपवित्रं स्वसिद्धि-कामेन जनेन लोके ॥२॥ "जिनका शासन अनेकान्तमन-अजय था-सर्वथा एकान्तमतावलम्बी परवादीजन जिम जीतने में असमर्थ थे-और जो सत्पुरुपोंके-भव्यजनोंक-प्रधान नेता थे-उन्हें आत्मकल्याणके समीचीन मार्गमें 'न केनचिजायते (अन्तरंगेबाह्येश्वशत्रभिन जीयने वा) इत्यजित: अतएव अवन्ध्यमवर्थम' । -प्रमाचन्द्र:

Loading...

Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 460