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आनन्द प्रवचन : भाग ११
ही प्रखर, तेजस्वी और शक्तिमान बनेगा, वही दूसरों को शरण दे सकेगा, प्रभावित एवं प्ररित कर सकेगा ।
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अपने
राम और रावण के युद्ध का जब प्रथम दौर चल रहा था, तब रावण ने पुत्र और सर्वोच्च सेनापति मेघवाद को ही सर्वप्रथम लड़ने भेजा । मेघनाद पर युद्ध में विजय का रावण को पूर्ण विश्वास था । मेघनाद को युद्ध के लिए आता देख्ख राम पीछे हट गये और लक्ष्मण से बोले - "भैया ! तुम्हें ही मेघनाद से युद्ध करना है ।"
कैसी विचित्र बात थी ! अपार शक्तिशाली राम को मेघनाद से लड़ने में स्वयं पीछे हटकर लक्ष्मण को ही उसका सामना करने क्यों भेजना पड़ा ? स्वयं श्रीराम ने इसका स्पष्टीकरण किया है - "लक्ष्मण ! मेघनाद १२ वर्षों से तप कर रहा है, वह ब्रह्मचारी है, और तुम १४ वर्ष से ब्रह्मचारी हो । मेरे साथ रहकर निष्ठापूर्वक तपस्वी एवं संयमो जीवन तुमने बिताया है । इसलिए तुम ही मेघनाद को पराजित कर सकते हो ।" सचमुच लक्ष्मण की ब्रह्मचर्य - शक्ति ने मेघनाद - इन्द्रजीत को हरा दिया । लक्ष्मण सचमुच ही जितात्मा थे ।
भीष्म पितामह को कौन नहीं जानता । वे महाभारत युद्ध में अपराजेय तथा समस्त कौरव पाण्डवकुल के आदरणीय एवं विश्वस्त पुरुष रहे, उनकी प्रचण्ड शक्ति का मूल ब्रह्मचर्यं ही था । स्वामी विवेकानन्द, उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस, महर्षि दयानन्द आदि संसार में जो कुछ अद्भुत कार्य कर सके, उनका मूल उनका ब्रह्मचर्य - पूर्ण संयमी जीवन ही था । स्वयं महात्मा गांधी का जीवन भी उसी समय से प्रका में भाषा, जब उन्होंने अखण्ड संघम (ब्रह्मचार्य) पालव की प्रतिज्ञा ली ।
यह ध्रुव सत्य है कि विषय-भोगों में मनुष्य को सुख नहीं मिल सकता । भगवद्गीता में स्पष्ट कहा है
ये हि संस्पर्शजा भोगा दुःखयोनय एव ते । आद्यन्तवन्तः कौन्तेय ! न तेषु रमते बुधः ॥
— जो ये इन्द्रियों और विषयों के सम्पर्क से उत्पन्न होने वाले भोग हैं, वे निःसन्देह दुःख के ही कारण हैं और नाशवान हैं। हे अर्जुन ! इसीलिए बुद्धिमान पुरुष उनमें रमण नहीं करते ।
उत्तराध्ययन सूत्र में भी कामभोगों को अनर्थंकारक कहा है
खाणी अणत्थाण उ कामयोगा ।"
कामभोगाणुराएणं केसं संपड़िवज्जइ ।
- कामभोग अनर्थों की खान हैं ।
--- कामभोगों में अनुराग से जीव क्लेस (दुःख) पाता है ।
१. उत्तराध्ययन सूत्र - १४ / १३
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२. उत्तराध्ययन सूत्र - ५ / ७
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