Book Title: Anand Pravachan Part 11
Author(s): Anand Rushi, Shreechand Surana
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

View full book text
Previous | Next

Page 364
________________ मृत और दरिद्र को समान मानो ३४३ पेरिस भेज दिया, फिर उसकी इच्छा रसायनशास्त्र पढ़ने की हुई। फलतः वह न केवल रसायनशास्त्र में पारंगत हुआ, बल्कि चिकित्साशास्त्र में भी वह विद्वान् हो गया। वही गरीब मोची का लड़का 'लुई पाश्चर' के नाम से विख्यात हुआ । उसने अपनी मौलिक सूझ-बूझ से विषैले जन्तुओं द्वारा काटे जाने पर मनुष्यों को मरने से बचाने की दवाई की खोज की। फोड़ों की चीर-फाड़ के बाद सड़ने से बचाने के लिए दबाई खोज निकाली। पागल कुत्तों द्वारा काटे गये मनुष्यों के इलाज के इंजेक्सन निकाले । संक्रामक रोगों की रोकथाम के लिए लुई के नाम पर 'पाश्चर इन्स्टीट्यूट' नाम से लुई की परोपकारी भावना का प्रतीक आज भी मौजूद है। लुई के चरित्र को देखकर कौन कह सकता है कि दरिद्र पिता का पुत्र सदैव दरिद्र ही रहता है, वह मन का दरिद्र न बने तो दिल का धनिक बन सकता है। धन की दरिद्रता तब उसका कुछ भी बिगाड़ नहीं कर सकती। तन की दरिद्रता होने पर भी मन से दरिद्रता महसूस न करने के कारण अंधी, मूक और बहरी महिला 'हेलन केलर' ने जगत् में अद्भुत सफलता प्राप्त करके दिखा दी। जगत् के सभी लोग उसकी अद्भुत क्षमता देखकर दाँतों तले उंगली दबाने लगे । इसी प्रकार विश्व में ऐसे लोग भी हैं, जिन्होंने शरीर से लूले, लंगड़े एवं अंगविकल होने पर भी-अर्थात् तन से दरिद्र होते हुए भी मन से दरिद्रावस्था महसूस न करके अद्भुत क्षमता अर्जित कर ली, सफलता उनके चरण चूमने लगी। भाग्य खुलते हैं मनोदारिद्र य एवं अनैतिकता दूर करने से कई लोग तन से दरिद्र न होते हुए भी अपने आलस्य, अकर्मण्यता, उत्साहहीनता, आत्महीनता आदि दुर्गुणों के कारण धन से भी दरिद्र बने रहते हैं, और मन से तो दरिद्र होते ही हैं । धन से दरिद्र होने पर भी अगर मानसिक दुर्बलताएं न हों तो कोई खास कारण नहीं कि धन की दरिद्रता चिरकाल तक टिक सके । परन्तु धन से दरिद्र लोग अकसर अपने दुर्भाग्य का रोना रोते रहते हैं, वे अपनी अकर्मण्यता, आत्मविश्वास की कमी, आत्महीनता, आलस्यवृत्ति आदि को नहीं देखते, न ही उत्साहपूर्वक दरिद्रता-निवारण का प्रयत्न करते हैं। वास्तव में उनकी दरिद्रता का कारण दुर्भाग्य तो कम होता है, प्रायः मानसिक दरिद्रता और आत्महीनता ही अधिक होती है। कई लोग अपनी दरिद्रता का कारण भगवान या ईश्वर की कृपा या देवी-देवों के अनुग्रह का अभाव समझते हैं, परन्तु वे यह नहीं समझते कि देवी-देव या भगवान भी किसी के शुभकर्मों का उदय हो, पुण्य प्रबल हो, तभी उस पर प्रसन्न होकर सहायता कर सकते हैं। परन्तु कई धन और मन से दरिद्र लोग अपना पुण्य प्रबल करने और दरिद्रता के कारणभूत अशुभकर्मों का निवारण करने का कोई उपाय या पुरुषार्थ नहीं करते, वे सिर्फ या तो देवी-देवों की मनौती करने लगते हैं, या भगवान को प्रसन्न Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374