Book Title: Anand Pravachan Part 11
Author(s): Anand Rushi, Shreechand Surana
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 367
________________ ३४६ आनन्द प्रवचन : भाग ११ रविशंकर महाराज ने कहा-"तो लो, मेरी बात मानकर इन फालतू व्यसनों को आज से ही तिलांजलि देकर प्रतिमास दस रुपयों के बदले पन्द्रह रुपयों की बचत कर लो तो तुम्हारा वेतन प्रतिमास १५) रुपये अधिक हो जाएगा। क्यों आप लोगों की समझ में आगया न ? ये दुर्व्यसन आज से मेरी झोली में डाल दो और जो १५) रुपये बचें, उन्हें वेतनवृद्धि के रूप में मानो।" परन्तु अध्यापकों ने श्री रविशंकर महाराज की यह हित-शिक्षा न मानी, तब दरिद्रता-निवारण और भाग्यद्वार का उद्घाटन कैसे होता ? दुर्व्यसनों से तन, मन, धन और धर्म चारों की हानि होती है, कोई भी फायदा नहीं है, फिर भी दरिद्रता की चक्की में पिसने वाले लोग इन्हें छोड़ना कहाँ चाहते हैं ? केवल भाग्य के भरोसे बैठे रहने वाले लोगों का भाग्य कदापि नहीं खुलता, वे आमतौर पर दुर्भाग्य के ही शिकार बने रहते हैं । एक बार दो देवों में एक बात पर विवाद खड़ा हो गया। दोनों में एक मिथ्यात्वी था, दूसरा था सम्यक्त्वी। मिथ्यात्वी देव कहता था-"दिव्य शक्तिधारी देव चाहे जिसको भाग्यवान बना सकता है ?" जबकि सम्यग्दृष्टि देव का कहना था"चाहे जितना शक्तिशाली देव हो, बिना भाग्य के किसी को कुछ नहीं दे सकता है, न ही सम्पन्न बना सकता है।" दोनों ने परीक्षा करके निश्चय करने की ठानी। सम्यक्त्वी देव ने अपने अवधिज्ञान से एक जाट परिवार को दुर्भाग्यपूर्ण जानकर मिथ्यात्वी देव से कहा-"बनाओ जाट, जाटनी और जाट के युवा पुत्र को भाग्यवान् ! इनकी दरिद्रता दूर करो।" मिथ्यात्वी देव ने कहा-"ऐसा ही होगा।" यह कह कर उसने तीनों के रास्ते में रत्नों के ढेर लगा दिये । सोचा कि रत्नों को प्राप्त करके ये तीनों सुखी हो जाएंगे। ___ इधर ये तीनों वार्तालाप कर रहे थे कि तीनों को एक नई बात सूझी कि अगर हम तीनों एक साथ अंधे हो जाएंगे तो अपना काम कैसे चलाएँगे ? अतः अभी से ही हमें इस (अंधे होने) का अभ्यास कर लेना चाहिए; ताकि समय पर अपना काम रुके नहीं। बस, तीनों भाग्यहीनों ने आँखों पर पट्टियाँ बाँध लीं, हाथों को आगे-आगे हिलाते चलने लगे। रास्ते में रत्नों के ढेर पर पैर रखकर चलते हुए बोले-"आज रास्ते में किसी ने इतने कंकड़ बिछा दिये हैं कि चलना मुश्किल हो रहा है।" जैसे-तैसे रास्ता तय किया। आगे जाकर उन्होंने आँखों पर से पटियां खोल दी और कहने लगे-"अब कोई हर्ज नहीं, हम अंधे भी हो जाएंगे तो भी अपना काम चला ही लेंगे।" _____ सम्यग्दृष्टि देव ने कहा- 'देखा, इन भाग्यहीनों को, ये तुम्हारे बिखरे हुए रत्नों के ढेर पर आँखों पर पट्टी बाँधकर चलने लगे। बना दिया तुमने इन्हें भाग्यवान ?" Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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