Book Title: Anand Pravachan Part 11
Author(s): Anand Rushi, Shreechand Surana
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 363
________________ ३४२ आनन्द प्रवचन : भाग ११ ___ मोची ने लुई के लिए कुछ किताबें खरीदीं। उसे स्कूल में भर्ती कराया, पर लुई का मन पढ़ने-लिखने में नहीं लगा। पिता ने एक .ध्यापक रखकर पढ़ाने का प्रबन्ध किया। उसने लुई को पढ़ाने में कठोर परिश्रम किया, लेकिन अन्त में उसे मन्द-बुद्धि कहकर तिरस्कृत कर दिया गया । पिता बहुत दुःखी व चिन्तित रहता था, अपने बच्चे के भविष्य के लिए। उसने लुई को पुनः-पुनः समझाने की कोशिश की और उसे उच्छाई की ओर बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। यह भी कहा-“लुई ! मेरी बड़ी इच्छा है कि तुम समाज-सेवा का कोई कार्य पढ़-लिखकर करो। हो सके तो विज्ञान पढ़ो। क्योंकि उसमें भी तरक्की की बहुत गुजाइश है, पर तुम पढ़ने में काफी दिलचस्पी नहीं ले रहे हो।" लुई कहता-“मैं पढ़ता तो हूँ लेकिन मेरे दिमाग में कोई बात बैठती ही नहीं, करूं क्या ?" कभी-कभी पिता की गरीबी और लाचारी को देखता और उनके द्वारा प्रोत्साहन और आशा को देखता तो वह रो उठता। पिता बीच-बीच में लुई का मन पढ़ाई में न लगता देख हताश-निराश हो उठता, परन्तु पिता द्वारा बार-बार प्रोत्साहन और प्रेरणा से अब लुई में परिवर्तन आने लगा। बूंद-बूंद पानी गिरने से पत्थर पर भी निशान हो जाता है। लुई ने अपने गरीब पिता की महत्त्वाकांक्षा को ध्यान में रखकर भगवान् को साक्षी से संकल्प किया-'अब मैं पूरी निष्ठा से अध्ययन करूंगा। मैं मन को पढ़ने-लिखने में लगाऊंगा और विद्वान् वैज्ञानिक बनूगा। सच्ची लगन से मुझे अभीष्ट सफलता मिलेगी, मेरे निर्धन पिता की आत्मा सन्तुष्ट होगी।' इस प्रकार लुई फिर से अध्ययन में जुट गया। प्राथमिक शिक्षा के लिए उसने 'अरवोय' की एक पाठशाला में दाखिला लिया। फिर कठिनाई के काले बादल मंडराने लगे । संस्कारवश उसकी मोटी बुद्धि विद्या जैसे सूक्ष्म विषय में गतिमान न हो सकी। सावधानी से पढ़ने पर भी लुई को कक्षा में पढ़ाया हुआ पाठ समझ में न आता, न ही याद होता था। इस कारण वह कक्षा में बुद्ध समझा जाने लगा। अध्यापकों ने उसे पढ़ाई छोड़कर किसी व्यवसाय म लगने की राय दी। विज्ञान पढ़ने का कार्य तेरे बूते का नहीं' यह निर्णय लुई ने सुना तो अपनी मोटी बुद्धि पर उसे बड़ा तरस आया । एक बार तो हताश होकर पढ़ाई छोड़ने का विचार कर लिया, फिर पिताजी की आकांक्षा, कारुणिक चहरा और आत्म-तृप्ति को धक्का, यह सब सोचकर उसने अपना खोया हुआ साहस पुनः बटोरा । आलोचनाओं की परवाह न करते हुए वह पुनः पढ़ने में जी-जान से जुट गया। उसे अब पता लग गया कि उसमें आत्मविश्वास की कमी थी, जिसके कारण उसकी बुद्धि अड़चन बनी हुई थी, उसे शिक्षा में आगे नहीं बढ़ने दे रही थी । अतः इस बार लुई पूरे आत्मविश्वास के साथ पढ़ने लगा। इस लगन के कारण विज्ञान के गूढ़ नियम और पुस्तके उसको समझ में आने लगीं। उसकी बुद्धि बढ़ने लगी। धीरे-धीरे विज्ञान में तरक्की की। गरीब पिता ने कुछ पैसे इकटे करके उसे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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