Book Title: Anand Pravachan Part 11
Author(s): Anand Rushi, Shreechand Surana
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 358
________________ मृत और दरिद्र को समान मानो ३३७ परिस्थिति को देखकर वे और भी हतोत्साह हो जाते हैं और समझ लेते हैं कि ऐसी परिस्थिति में हम कोई भी कार्य नहीं कर सकते । इस तरह अपनी शक्ति, योग्यता और क्षमता पर से उनका विश्वास उठ जाता है । उन्हें अपने आप में पुरुषार्थ करने का उत्साह नहीं रहता । 1 ऐसे मनोदरिद्र लोगों में जब अपनी योग्यता और शक्ति पर से विश्वास उठ जाता है, तब उनमें जो नैतिकता के सद्गुण होते हैं, न्यायनीति - पूर्वक पुरुषार्थं करने के और धैर्य, गाम्भीर्य आदि जो सद्गुण होते हैं, उनका भी ह्रास होने लगता है । फलतः ऐसे मनोदरिद्र अपने जीवन को भारभूत, अभिशाप और दूभर समझने लगते हैं । उनमें न तो कोई आत्मगौरव रहता है, न महत्त्वाकांक्षा और न ही स्वतंत्रतापूर्वक जीने की शक्ति रह जाती है । एक तरह से पराधीन, परमुखापेक्षी और पराश्रित हो जाते हैं । उनमें स्वतंत्र रूप से चिन्तन की शक्ति भी क्षीण हो जाती है; न कार्य करने का ढंग रह जाता है और न ही कोई अध्यवसाय, साहस या सत्कार्य करने का माद्दा रहता है । फलतः वे एक ऐसे ढालू स्थान पर पहुँच जाते हैं, जहाँ से वे लगातार नीचे गिरते ही जाते हैं, फिर ऊंचे उठ नहीं पाते । उनके मन के सारे मनोरथ मर जाते हैं । इस प्रकार मनोदरिद्र की अवस्था शरीर से जीवित किन्तु मन से मृत की-सी हो जाती है । मनोदरिद्र अपनी मानसिक अवस्था को ऐसी बना लेता है, जिसमें फिर कभी किसी प्रकार की उन्नति करने की गुंजाइश ही नहीं रहती । दरिद्रता अपने आप में इतनी भंयकर नहीं है, न मनुष्य को मुर्दे-सा बना देने वाली है, जितनी कि दरिद्रता की भावना, यानी 'मैं सदा दरिद्र ही बना रहूँगा,' यही मनोभाव, सबसे अधिक घातक होता है । ऐसे दारिद्र्य के मनोभाव मनुष्य में दीनताहीनता का संचार करते हैं, जिनके कारण वह दारिद्रय से पराङमुख होकर उससे पिण्ड छुड़ाने का साहस और पुरुषार्थ ही नहीं कर पाता। वह अपनी शक्तियों की पहचान न कर पाने के कारण अहर्निश दरिद्रता के वातावरण से घिरा रहता है । अपने सम्पर्क में आने वाले हर व्यक्ति के सामने वह अपनी दरिद्रता और दीन-हीनता का रोना रोता रहता है । " प्रत्येक बुरी बात में भी कुछ न कुछ प्र ेरक गुण अथवा कोई न कोई हित निहित रहता है । इस कहावत के अनुसार दरिद्रता से भी कुछ न कुछ अच्छी बात निकाली जा सकती है । किसी ने कहा है शक्ति करोति संचारे शीतोष्णे मर्षयत्यपि । दीपयत्युदरे वन्ह दारिद्रयं परमौषधम् ॥ ऐश्वर्य तिमिरं चक्षुः पश्यन्नपि न पश्यति । तस्य निर्मलतायां तु दारिद्र यं परमौषधम् ॥ - दरिद्रता मनुष्य में शक्ति का संचार कर देती है, सर्दी-गर्मी सहन करने की Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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