Book Title: Anand Pravachan Part 06
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 270
________________ २५८ आनन्द प्रवचन | छठा भाग कवि का इसीलिए कहना है कि-'अगर तुझे भवसागर को पार करना है तो मन की कठोरता का त्याग करके परोपकार कर और क्रोध, लोभ तथा अहंकार आदि का त्याग करके यमराज से लड़ने के लिए धर्म-रूपी तलवार हाथ में पकड़ ले।' यमराज का सामना कैसे किया जाय ? आप सोचेंगे कि तलवार के द्वारा क्या यमराज का मुकाबला किया जा सकता है ? और इस संसार में जो संत, महामुनि एवं धर्मात्मा व्यक्ति हैं, वे क्या यमराज को जीत लेते हैं ? इस विषय में हमें गम्भीरतापूर्वक विचार करते हुए समझना चाहिए कि धर्म-रूपी तलवार से भले ही इस जन्म में यम को जीता नहीं जा सकता, क्योंकि जब जन्म लिया है तो मरना अवश्य पड़ेगा तथा उस समय कोई हथियार काम नहीं देगा। किन्तु मुमुक्षु सर्वान्तःकरण से इस जन्म में धर्म को अपना लेता है तथा उसकी सम्यक् प्रकार से आराधना करता है तो इस जन्म के बाद या अगले कुछ जन्मों के बाद ही सही, पर वह कर्मों से सर्वथा मुक्त हो जाता है और उसके पश्चात् न उसे जन्म लेने की आवश्यकता होती है और न ही मरते समय यमराज से डरने की ही जरूरत पड़ती है । गजसुकुमाल मुनि ने तो अपनी शैशवावस्था में ही संयम ग्रहण कर लिया था और उसी दिन महाकाल श्मशान में जाकर ध्यानस्थ हो गये। जब सोमिल ब्राह्मण ने उन्हें देखा तो मारे क्रोध के मुनि के मस्तक पर मिट्टी की पाल बाँधकर समीप ही जलती हुई चिता के अंगारे सिर पर रख दिये । किन्तु बालमुनि गजसुकुमाल के हृदय में क्रोध का आना तो दूर, उनका ध्यान भी विचलित नहीं हुआ । खोपड़ी चटक कर फट गई और वे उसी समय केवलज्ञान एवं केवलदर्शन लेकर संसार से मुक्त हो गये । इस प्रकार अपने धर्म की उत्कृष्ट आराधना के फलस्वरूप उन्होंने न पुनः जन्म लिया और न ही यमराज की उपस्थिति का अनुभव किया। ऐसे भव्य प्राणी एक जन्म में भी यमराज को परास्त कर देते हैं। पर सभी की आत्मिक दृढ़ता समान नहीं होती और न ही सब लोग एक जन्म में ही धर्म की तलवार से यम को परास्त कर पाते हैं । किन्तु यह दृढ़ सत्य है कि जो साधक दृढ़ता से धर्म-रूपी तलवार को हाथ में ले लेता है अर्थात् धर्म को सच्चे मायने में ग्रहण कर लेता है वह जल्दी या देर से, कभी न कभी यमराज को परास्त अवश्य कर देता है अर्थात् मुक्त बन जाने के कारण फिर कभी उसका सामना करने की आवश्यकता नहीं रहती। जो साधक धर्म को आत्मा में रमा लेता है वह दृढ़तापूर्वक कह सकता है _गहिओ सुग्गइ मग्गो, नाहं मरणस्स बोहेमि यानी-मैंने सद्गति के मार्ग-धर्म को अपना लिया है अतः अब मैं मृत्यु से नहीं डरता। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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