Book Title: Anand Pravachan Part 06
Author(s): Anand Rushi, Kamla Jain
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 309
________________ पोरुष थकेंगे फेरि पीछे कहा करि है ? २६७ बंधुओ, यह एक रूपक है पर यथार्थ को प्रकट करता है । हम देखते हैं कि संसार में अधिक पाप धन के लिए किये जाते हैं और धन प्राप्त होने के पश्चात् उससे भी ज्यादा पाप व्यक्ति करता है । इसलिए ऐसे धनवानों का स्वर्ग या मोक्ष में पहुँचना बड़ी कठिन बात होती है । इसीलिए भगवान से पुनः पुनः कहा है और आज संत-महापुरुष भी उनके वचनानुसार व्यक्तियों को यही उपदेश देते हैं कि उस दुर्लभ मानव-जीवन का एक क्षण भी व्यर्थ मत जाने दो । जो विवेकी एवं बुद्धिमान व्यक्ति होते हैं वे अपने जीवन को अंधाधुध व्यतीत नहीं करते, अपितु बड़ी सावधानी और समझदारी से जीव एवं जगत के रहस्य को समझकर अपना वास्तविक उद्देश्य निश्चित करते हैं । मनुष्यमात्र का कर्तव्य भी यही है कि वह ज्ञानीजनों की वाणी के प्रकाश में जीवन की सफलता किसमें है, यह समझें और उसके अनुसार अपने जीवन को शुद्ध, निष्कलंक एवं साधनामय बनाएँ । एक कवि ने बड़ा मार्मिक शेर कहा है जिंदगी एक तीर है, जाने न पाए रायगां । देखलो पहले निशाना, बाद में खींचो कमां ॥ कवि का कथन है कि – “यह जीवन एक तीर के सोच-विचार कर पहले अपना लक्ष्य निर्धारित करो और तब निष्फल न जाने पाये ।" अगर व्यक्ति ऐसा नहीं करेगा तो जिस किया बिना छोड़ा हुआ तीर निरर्थक जाता है, उसी प्रकार जाने बिना ही जीवन व्यतीत करने से वह व्यर्थ हो जाता है। असावधानी भी कभी-कभी दुर्गति का कारण बन जाती है । प्रकार डॉक्टर की जरा सी भूल रोगी की मृत्यु का कारण ह्रण है— तनिक-सी भूल का दुष्परिणाम एक बार एक वैद्यराज अपने छात्रों की परीक्षा ले रहे थे, प्रश्न बड़े कठिन थे और होने भी चाहिए थे, क्योंकि डॉक्टर या वैद्य के ऊपर मरीजों के प्राणों की जिम्मेदारी होती है | तनिक भी कहीं गड़बड़ी हो जाय तो बेचारा रोगी भारी कठिनाई में और कष्ट में पड़ सकता है । Jain Education International समान है । अतः खूब इसे छोड़ो ताकि यह तो परीक्षा के समय वैद्यजी के सभी छात्र बड़े चिंतित और भयभीत थे पर एक शिष्य उनके सभी प्रश्नों का उत्तर अत्यन्त संतोषजनक दे वैद्यजी ने उससे एक प्रश्न और पूछा - "बताओ अमुक प्रकार के औषधि कितनी मात्रा में दोगे ?" रहा था । अन्त में रोगी को तुम अमुक For Personal & Private Use Only प्रकार लक्ष्य स्थिर जीवन के लक्ष्य को मानव की छोटी सी ठीक उसी प्रकार जिस बनती है । एक उदा www.jainelibrary.org

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