Book Title: Amrutsagar Vaidyak Granth Author(s): Sawai Pratapsinh Maharaj Publisher: Gyansagar Press View full book textPage 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कोलसाकारणसुंहुवो, यानिश्चय करणी, पछे. सा साध्य, यांकोविचारकरणो. साध्य अथवा कष्टसाध यकरणे असाध्य होयतो उपायनहि करण कार बहरिभजनछे. पथ्यापथ्यविचार रोगीनैवैद्यकहैंसो.पथ्यकरणों प्रवश्यडे, अथवध सौविचारकर, पथ्यतोकरेंही. कारण. पथ्यकाक एा होयछे. जदऔषधषायकर पथ्यकरे-जी राहोयजिमैसंदेहबीन हींछे औरजोरोगी. नैं औषधी सेवन ककीगरज नहीं. जिस ह्रींकरणेवालोजीनें बीओ बधसेवनकरणेकी पथ्य रोगी मरेनजीवे मूर्खवैद्यकीओषधीलेणोि रोगीनैं मूर्ख वैद्यका हातसों औषधलेलीनर होय, ज्वरसौदुखी होय, तो बीमूर्खवैद्यकी कारण मूर्ख वैद्यका उपाचसौ गुएा प्राव गुणतो जरूरही तुरत होय-ईवास्ते मूर्ख एलीनहीं. जैसे कुलीन पुरुष. व्यभिचारणी यान मूर्ख वैद्यकाहात की औषध त्यागदे ग्रंथछापणें कोप्रयोजन सर्व लोक हितकारक अमृतसागर नै पहि र छाप्यो. जींकी किंमत सुलभ-प्रयोजन घ उसकें ईवास्ते. याग्रंथकों बांचकर कोईन ठग. चाचाल. लालची. यांकी खोटी औषथः सीनहीं हमारी खातरीछे.. न For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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