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अमृतसागरं तथा प्रतापसागर तरंग आछोषायोथको सर्वपचिजाय परिवाभीगरमी कामजारने उपजा बैछै २ अरजीकीपायकी प्रकृतिहोय तीकेविसमाग्निहोय सोचावाय कारोगांनेउपजावैरै सीवाक देतोअन्ननेपचायदेरकदेकमन्नने नहींपचावै ३ अर या चौथीसमाग्निछैसोसारीत्र्यग्निसंश्रेष्ठ श्राछी तरैं मनुष्य भोजन करे सोचचायदे अरकोई हीरोगकुंउपजावैनहीं ५ प्ररपंचमीभस्माग्निछेसोभस्मक कारोगांनैउपजावेछे कैसे कही औषधिकासंयोगसूंसरीरमांहिलोक फघटिजायछे श्ररपित्तवोध ग्निरुपवधिवोहीबायकासंजोगसंप्रेस्तौ थकौम हातीब्रमग्निनेंउप जावेछै तब भस्मकमग्निहोजायछे नबवेंने पाया कौन ही मिलेगी ति सपसेव दाहमूर्द्धानेंत्र्यादिलेर वेनेंकर आदमीनै मारिनाषैछै सोमनु यहे अग्निकावलनैविचारयांविनाजतनकरै अथवा भोजनादिकक रैतोवें की निश्वैरोग होय पर वेंकीची कित्सासफलहोयनहीं ५ इति ग्निबलविचारसंपूर्णम् अथरोगी के साध्यपरिक्षालिष्यने रोगानेराननेंनींदनहीच्या अवेंकाकंठमेकफवोले पर कासरीर मैं दाहहोय र वेरोगीकीनाडीमंदहोय पर वेंकी बोलवामैजीमथकी जाय र रोगी की सर्वइंद्री आपआपनाधर्मनै छोमंदे सोरोगीनिव मरे अरजीरोगी की अग्निमंदहोयजाय की प्रकृतिबिगडिजाय ओभीरोगीच्यसाध्यजाणिजे अरजीरोगी कीत्र्यांपिलालहोजाय अर स्वासहोयत्र्यावै अरहीयामेंसूलनाले पर वेकैतंद्राहोयमाने रहि चकिचालिजाय भरतृषा बहोतहोयश्रावै अरघणेशो अरघलो दाहहोयावे परपसेववैकैपणांवर चिकटायावैसोरोगी निमरे इनिरोगी की प्रसाध्यपरिक्षासंपूर्णं अथरोगी की साध्यपरि शालिष्यते जोरोगी आपकी प्रकृतिमठिकाणैर है अरजीकीयग्नितीर
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