Book Title: Amrutsagar Vaidyak Granth
Author(s): Sawai Pratapsinh Maharaj
Publisher: Gyansagar Press

View full book text
Previous | Next

Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir _ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग . इतियोषदिविचारसंपूर्णम् अथदेसविचारलिष्यने देसहें सोनीनप्रकारकोछै आनूप साधारण २ जांगल जैठेघपोजल सदा वहतोहोय श्ररकफ-देसमेंघपोहोय ऐसोपूर्ववेनैानूपकहजे अरसोलक्षणोरठेभाहोय जानीआनूपदेसकहजे अरजी देसमैंचायघणीहोयतीदेसनेजांघलकहजे अरजीदेसमेंवायपित्तकफ बराबरिहोय नांदेसनेसाधारणदेसकहजे परजींदेसमें जोआदमीउपजेतीवादमीकीयाहीप्रकृतिहोयछे निदेसविचा रसंपूर्णम् अथकालविचारलिष्यते कालतीनप्रकारकाछै सी नकाल १ उष्णकाल २ वर्षाकाल ३ सोयांकोविचारतिपूंछू सीत कालमैसीतथोडोपडै अरघगोपडेनोरोगहोय अरसीनकालमे गरमापडे तोश्रोविपरीनछ अोभीआछोनहीं ईमेमीरोगहोयइसी नरेंउष्णकालमेंउपाथोडोपडै अथवाघोपडे अथवा ईमसीत पडैतौरोगकी उत्पत्तिहोय असेंहीवर्षाकालमेंवर्षा थोडीहोय अ थवा घणीहोय अथवा होयनहीं तोमनुष्यांकैरोगउपजे इनिका लविचारसंपूर्णम् अथअवस्थाविचारलिष्यते अथश्र वस्थाछैनोयगाप्रकारकी नीमनीनियुष्यछे एकतोबालअवस्था १ दुसरीतरुअवस्था २ तिसरहहअवस्था ३ नीमेजोउत्तममध्य मअधम जोमनुष्यहोय नींके गीजोरोगउपज्योहोय नीकासरीर अरअवस्थामाफिकसदवैद्यहै मोजतनकरे इतिअनस्थानि चारसंपूर्णम् अथअर्थविचारलिष्यते अर्थपांचप्रकारकोडे एकत्तोशब्द दूसरोस्पर्श निसरोरुप३ चौथोरस ४पांच मेगंध ५ शब्दकोठिकामोतोकान में स्पर्शकोठिकाएर त्वचा में रूपकोटिका गोनेत्र रसकोठिकाणूजीभमैं गंधकोशिकाए नासिकामें सो For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 ... 590