Book Title: Amrutsagar Vaidyak Granth
Author(s): Sawai Pratapsinh Maharaj
Publisher: Gyansagar Press
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१. अमृतसागर तथापतापसागर तरंग १ गुरायाका समर्थथकाथोडोसरों अथवाघगोसरोंअथवा मिथ्या सुरों कयूंकोक्यूमुरो स्पर्शकासामर्थथकाथोडोस्पर्शकरेअथवा मि थ्यास्पर्शकरैरूकोईपर्शकरे देषवाकासामर्थथकांथोडोदेषेअथवा देषघणोअथवा मियादेपे कोईदेषे ३ छयरसकाषाबाकासाम र्थ थोडोषाथ अथवा घपोषाय अथवा मिथ्याषाय क्यूंकोईक्यूं हीषाय ४ संघवाकासामर्थथकाथोडो घेअथवा मिथ्या पेअथवा क्यूंकोफ्यूंही घेनोनिश्रोगकी उत्पत्तिहोई अरयापांच हीकोमलोसाधनराषिवोकरेतोमनुष्यसदाहीनरोग्यहोई इतित्र र्थविचारसंपूर्णम् अथकर्मविचारलिष्यते कर्मतीनप्रकारका छै एकतोकायक कायामेरहेसोकर्मकर्मकहियेकरियो सोतोकायककहिये २ येकमानसकर्म मनमैरहेसोमानसकर्म ३ येक वाचक वालिभैरहेसोवाचक कर्मकहिजे ४ सोकायाका कर्मकी सामर्थथकाथोडोकर्मकरै अथवा घणीकरैअथवा मिथ्याकरैक्यूं कोक्यूंकरे। अरमानसककासामर्थथकाथोरोकरेथना घगोक रेअथवा मिथ्याकरैक्यूकोस्यूंकरे अरबोलवाकासामर्थथकांथो डोबोले अथवा घरोबोले अथवा मिथ्याबोले क्यूंकोक्यूंहीवोने ३ तौमनुष्यकैरोगकी उत्पत्तिहोय अरयांनीन्यांहीकर्मको मनुष्यभ लोयोगराषियोकरैतोओमनुष्यसदाहीनेरोग्यरहे इतिकर्मविचा रसंपूर्णम् अथअग्निबलविचारलिष्यते अग्निपांचप्रकार कोछे एकतोमंदाग्नि दूसरोनीक्षणाग्नि २ तीसरीविसमाग्नि ३चो थीसमाग्नि ४ पांचवीभस्माग्नि ५सोकफीपतिजीकेअधिक हो य जीकेमंदाग्निहोयछे सोनोकफकारोगहू उपजावे सोनाछी रही सरजाकीपित्तकीप्रकृति होयताकानीक्षणअग्निहोय सो
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