Book Title: Ahimsa
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 16
________________ अहिंसा घास पर चल रहा हो। फर्क तो है ही न? दादाश्री : ठीक है पर उसमें बहुत लंबा अंतर नहीं है। यह तो लोगों ने उल्टा डाल दिया है। बड़ी बात रह गई और छोटी बातें डाली। लोगों के साथ चिढ़ना उसे बड़ी हिंसा कहा है। सामनेवाले को दुःख होता हैन ! नियम, खेती में पुण्य-पाप का..... प्रश्नकर्ता : ये किसान खेती करते हैं उसमें पाप है ? १९ दादाश्री : सब ओर पाप है। किसान खेती करे उसमें भी पाप है। और ये अनाज के दानों का व्यापार करते हैं, वे सभी पाप हैं। दानों में जीव पड़ते हैं या नहीं पड़ते? और लोग जीवजंतुओं के साथ बाजरा बेचते हैं। अरे, जंतुओं के भी पैसे लिए और वे खाए ! प्रश्नकर्ता: पर खेती करनेवाले को एक पौधे को बड़ा करना पड़ता है और दूसरे पौधे को उखाड़ना पड़ता है। तब भी उसमें पाप का भार है कोई? दादाश्री : है ही न! प्रश्नकर्ता: तो किसान खेती किस तरह करे? दादाश्री : वह तो ऐसा है न, एक कार्य करो, उसमें पुण्य और पाप दोनों समाए हुए होते हैं। यह किसान खेती करते हैं, वे दूसरे पौधे को उखाड़ डालते हैं और इस काम के पौधे को रखते हैं, यानी उसे पालतेपोसते हैं, उसमें उसे बहुत पुण्य बँधता है और जिसे निकाल देते हैं, उसका उसे पाप बँधता है। यह पाप पच्चीस प्रतिशत बँधता है और पुण्य उसे पचहतर प्रतिशत बँधता है। तब फिर पचास प्रतिशत का फायदा हुआ न ! प्रश्नकर्ता: तो वह पाप और पुण्य 'प्लस माइनस' हो जाते हैं? दादाश्री : ना। वह 'प्लस माइनस' नहीं किया जाता। बही में तो दोनों लिखे जाते हैं। 'प्लस माइनस' हो जाता हो न, तब तो किसी के २० अहिंसा यहाँ ज़रा भी दुःख नहीं होता। तब तो कोई मोक्ष में भी नहीं जाता। वह तो कहता, ‘यहाँ अच्छा है, कोई दुःख नहीं।' लोग तो बहुत पक्के होते हैं। पर ऐसा कुछ होता नहीं । और जगत् पूरा तो पाप में ही है न और पुण्य में भी है। पाप के साथ-साथ पुण्य भी होते हैं। पर भगवान ने क्या कहा है कि लाभालाभ का व्यापार करो । स्पेशल प्रतिक्रमण, किसानों के लिए प्रश्नकर्ता: आपकी किताब में पढ़ा था कि 'मन-वचन-काया से कोई जीव को किंचित् मात्र दुःख न हो' ऐसा पढ़ा, पर एक तरफ हम किसान रहे, फिर तम्बाकू की फसल उगाएँ तब हमें ऊपर से हर एक पौधे की कोंपल, मतलब उसकी गरदन तोड़ ही डालनी पड़ती है। तो इससे उसे दुख तो हुआ न ! उसका पाप तो लगता है न? ऐसे लाखों पौधों की गरदन कुचल डालते हैं। तो इस पाप का निवारण किस तरह करें ? दादाश्री : वह तो अंदर मन में ऐसा होना चाहिए कि अरे यह काम कहाँ से हिस्से में आया? बस इतना ही। पौधे की कोंपल निकाल देनी । परन्तु मन में 'यह काम कहाँ से हिस्से में आया, ऐसा पश्चाताप होना चाहिए। 'ऐसा नहीं करना चाहिए' वैसा मन में होना चाहिए, बस । प्रश्नकर्ता: पर यह पाप तो होने ही वाला है न? दादाश्री : वह तो है ही। वह देखना नहीं है, वह आपको देखना नहीं है। हुआ करता है वह पाप देखना नहीं है। ऐसा नहीं होना चाहिए ऐसा आपको निश्चित करना है, निश्चय करना चाहिए। ऐसा काम कहाँ मिला? दूसरा अच्छा काम मिला होता तो हम ऐसा करते नहीं। वैसा पश्चाताप नहीं होता। ऐसा नहीं जाना हो न, तब तक पश्चाताप नहीं होता । खुश होकर पौधे को फेंक देता है। हमारे कहे अनुसार करना न, आपकी सभी जिम्मेदारी हमारी पौधा फेंक दो उसका हर्ज नहीं है, पश्चाताप होना

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