Book Title: Ahimsa
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 35
________________ अहिंसा ५७ किस तरह के हो फिर? जीव न हो वह खाया नहीं जा सकता हमसे, वह अखाद्य माना जाता है। प्रश्नकर्ता: पर यह वेजिटेरियन अंडा फलता नहीं है। दादाश्री : वह फलता नहीं है, वह डिफरेन्ट मेटर है। पर यह जीवित है । यानी ऐसा सब ठसा दिया है, तो इन जैनों के बच्चों को कितनी मुश्किल ! उस पर तो सभी बच्चे मेरे साथ झगड़े थे। फिर मैंने उन्हें समझाया कि 'भाई, ऐसे ज़रा विचार तो करो। निर्जीव हो तो हर्ज ही नहीं, पर निर्जीव तो खाया ही नहीं जा सकता।' फिर मैंने कहा, 'नहीं तो फिर बहुत यदि अक्कलमंद होओगे तो आपसे अनाज कोई भी खाया नहीं जाएगा। आप निर्जीव चीज़ खाओ।' तब निर्जीव चीज़ तो इस शरीर को काम लगती नहीं, उसमें विटामिन नहीं होते। निर्जीव जो चीजें हैं वे शरीर की भूख मिटाती ज़रूर हैं, पर उनमें विटामिन नहीं होते। इसलिए शरीर जीता नहीं है। ज़रुरी विटामिन नहीं मिलते न ! इसलिए निर्जीव वस्तु तो चले ही नहीं। तब उन बच्चों ने स्वीकार किया कि आज से वे अंडे हम नहीं खाएँगे। समझाएँ तो लोग समझने को तैयार हैं और नहीं तो इन लोगों ने तो ऐसा घुसा दिया है कि बुद्धि फिर जाए। ये सब गेहूँ और चावल और ये सब खाते हैं, इतनी बड़ी-बड़ी लौकियाँ खा जाते हैं, वे सब जीव ही हैं न ! नहीं हैं जीव? परन्तु भगवान ने खाने की बाउन्ड्री दी है कि ये जीव हैं, वे खाना । परन्तु जो जीव आपसे त्रास पाते हो उन्हें मारो नहीं, उन्हें खाओ नहीं, उन्हें कुछ भी मत करो। प्रश्नकर्ता: ये अंडे, वे त्रास पाते नहीं हैं, तो उन्हें खाना अच्छा है या नहीं? दादाश्री : अंडे त्रास पाते नहीं हैं परन्तु अंडे में अंदर जो जीव रहा हैन, वह बेभान अवस्था में है। पर वह फूटे तब हमें पता चलता है या नहीं? ५८ अहिंसा प्रश्नकर्ता : तुरन्त पता चलता है। पर अंडा हिलता डुलता तो नहीं न! तब ? दादाश्री : वह नहीं होता। क्योंकि वहाँ बेभान अवस्था में है । इसलिए होता नहीं। वह तो मनुष्यों का भी गर्भ चार-पाँच महीने का हो, वह अंडे की तरह ही होता है। इसलिए उसे मारना नहीं चाहिए। उसमें से फूटता है तो क्या होता है, वह हम मनुष्य समझ सकते हैं। दूध लिया जा सकता है? प्रश्नकर्ता: जिस तरह वेजिटेरियन अंडा नहीं खाया जा सकता, उसी तरह गाय का दूध भी नहीं पीया जा सकता। दादाश्री : अंडा नहीं खाया जा सकता, पर गाय का दूध अच्छी तरह लिया जा सकता है। गाय के दूध का दही खाया जा सकता है, कुछ व्यक्तियों से मक्खन भी खाया जा सकता है। नहीं खाया जा सके ऐसा कुछ नहीं। भगवान ने किसलिए मक्खन नहीं खाने का कहा था? वह अलग वस्तु है । वह भी कुछ ही व्यक्तियों के लिए ना कहा है। गाय के दूध की खीर बनाकर खाना चैन से उसकी बासुंदी बनाओ न, तब भी हर्ज नहीं। किसी शास्त्र ने आपति उठाई हो तो मैं आपको कहूँगा कि आपत्ति नहीं उठाई है जाओ, वह शास्त्र गलत है। फिर भी ऐसा कहते हैं कि ज्यादा खाएगा तो बेचैनी होगी। वह आपको देखना है। बाकी लिमिट में खाना । प्रश्नकर्ता : परन्तु दूध तो बछड़े के लिए कुदरत ने दिया है। हमारे लिए नहीं दिया। दादाश्री : बात ही गलत है। वह तो जंगली गायें और जंगली भैंसें थीं न, उनका बछड़े पीए तो सारा दूध पी जाए। और अपने यहाँ तो अपने लोग गाय को खिलाकर पालते पोषते हैं। इसलिए बछड़े को दूध पिलाना भी है और हम सबको दूध लेना भी है। और वह आदि-अनादि से ऐसा व्यवहार चालू है। और गाय को अधिक पोषण देते हैं न, तो गाय तो पंद्रहपंद्रह लिटर दूध देती है। क्योंकि उसे जितना अच्छा खिलाते -पिलाते हैं,

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