Book Title: Ahimsa
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 44
________________ अहिंसा ७५ संसार मतलब क्या ? हिंसात्मक ही रुख सारा। इसलिए वह तो मेल नहीं खाएगा। ये तो हिन्दुस्तान में थोड़ा-बहुत अहिंसा पालने के लिए तैयार होते हैं। बाकी सब लोग तो अहिंसा समझते ही नहीं न! प्रश्नकर्ता: पर जीवों को बचाना चाहिए, उसके पीछे सूक्ष्म अहिंसा का भाव है? दादाश्री : वह बचाना मतलब सूक्ष्म नहीं, स्थूल अहिंसा है। सूक्ष्म तो समझेंगे नहीं। सूक्ष्म अहिंसा किस तरह समझेंगे वे ? इन लोगों को स्थूल भी अभी समझ में नहीं आता न, तो सूक्ष्म कब समझ में आएगा? और यह स्थूल अहिंसा तो उनके खून में पड़ी हुई है न, इसलिए ये छोटे प्रकार के जीवों की अहिंसा का ध्यान रखते हैं। बाकी, ये सब लोग खुद के घर में पूरा दिन हिंसा ही किया करते हैं, सभी अपवाद बिना ! प्रश्नकर्ता: इन वेस्टर्न कंट्रीज़ में भी निरंतर हिंसा ही किया करते हैं। खाने में, पीने में, हरेक कार्य में। घर में भी हिंसा । मक्खियाँ मारनी, मच्छर मारने, बाहर लॉन में भी हिंसा, दवाईयाँ छिड़कनी, जंतु मार डालने, बाग-बगीचे में भी हिंसा, तो वे लोग किस तरह छूटें? दादाश्री : अरे, उनकी हिंसा से तो इस हिन्दुस्तान के लोग ज्यादा हिंसा करते हैं। दूसरी हिंसा के बदले यह हिंसा बहुत खराब। सारा दिन आत्मा की ही हिंसा करते हैं। भावहिंसा कहते हैं उसे । प्रश्नकर्ता : ये लोग तो खुद के आत्मा की ही हिंसा करते हैं, पर वे लोग तो दूसरों की आत्मा की हिंसा करते हैं। दादाश्री : ये लोग तो सभी के आत्मा की हिंसा करते हैं। जोजो मिलता है, उन सबकी हिंसा करते हैं। काम ही इनका उल्टा है। इसलिए तो वे लोग सुखी हैं न ! दूसरा, ऐसे जिस तिस को दुख देने के विचार ही नहीं और 'आइ विल हेल्प यू, आई विल हेल्प यू' किया करते हैं और अपने यहाँ तो मतलब रखते हैं, 'मुझे काम आएगा' तो हेल्प करते हैं, नहीं तो नहीं करते। पहले हिसाब निकालकर देख लेते हैं कि मुझे काम आएगा ! ऐसा हिसाब निकालते हैं या नहीं निकालते? अहिंसा इसलिए भगवान ने भावहिंसा को बहुत बड़ी हिंसा कही है और वैसा सब पूरा हिन्दुस्तान भावहिंसा कर रहा है। प्रश्नकर्ता: पर यहाँ तो अहिंसा पर सबसे अधिक जोर देते हैं। ७६ दादाश्री : फिर भी सबसे अधिक हिंसा यहाँ के लोगों की है। क्योंकि सारा दिन कलह कलह और कलह ही किया करते हैं। उसका क्या कारण? कि यहाँ के लोग अधिक जागृत हैं। फिर भी आज के लड़के जो उल्टे रास्ते चल पड़े हैं, उनको ऐसी भावहिंसा बहुत नहीं है बेचारों को। क्योंकि वे माँसाहार करते हैं और सब करते हैं इसलिए जड़ जैसे हो गए हैं। इसलिए जड़ में भावहिंसा बहुत नहीं होती। बाकी, अधिक जागृत हो वहाँ केवल भावहिंसा होती है। इसलिए सारा दिन कलह, कलह...... प्याले फूटे तब भी कलह ! कुछ हो गया तब भी कलह ! भाव स्वतंत्र, द्रव्य परतंत्र प्रश्नकर्ता : फिर भी इन्हें चाहे जैसे, पर अहिंसा तो हुई ही न? दादाश्री : भाव है वह स्वतंत्र हिंसा है और द्रव्य है वह परतंत्र हिंसा है। वह खुद के काबू में नहीं है। इसलिए यह परतंत्र अहिंसा पालते हैं। आज उनका वह पुरुषार्थ नहीं है। इसलिए यह जो अहिंसा है, वह स्थूल जीवों के लिए अहिंसा है, पर वह गलत नहीं है। जब कि भगवान ने क्या कहा हुआ है कि यह अहिंसा आप बाहर पालते हो, वह संपूर्ण अहिंसा पालो, सूक्ष्म जीव या स्थूल जीव सबके लिए अहिंसा पालो, पर आपके आत्मा की भावहिंसा नहीं हो, वह पहले देखो। यह तो निरंतर भावहिंसा ही हो रही है। अब यह भावहिंसा लोग मुँह से बोलते ज़रूर है, पर भावहिंसा किसे कहते हैं, वह समझना चाहिए न? मेरे पास बातचीत हो तो मैं समझाऊँ । भावहिंसा किसीको दिखती नहीं है, और सिनेमा की तरह, सिनेमा चलता है न, वह हम देखते हैं, ऐसे दिखाई दे वह सब द्रव्यहिंसा है। भावहिंसा में इतना सूक्ष्म बरतता है और द्रव्यहिंसा तो दिखती है, प्रत्यक्ष,

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