Book Title: Ahimsa
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 38
________________ अहिंसा अहिंसा कबीरसाहब तो अंदर रसोई में गए हैं। एक-दो भक्त बैठे होंगे तो उन्होंने कहा कि बैठिए साहब। उन्हें बैठाया चार पाई पर। फिर कबीरसाहब आए। कहते हैं, 'हम सत्संग करते हैं।' परन्तु पहले वह मन में था, इसलिए तुलसीदास बोल उठे कि, 'आप इतने बड़े संत। पूरे हिन्दुस्तान में आपकी ख्याति है और यहाँ कसाईबाडे में कहाँ रहते हो?' अब ये तो हाज़िर जवाब। उन्हें दोहा बनाना नहीं पड़ता था। वे बोलें वही दोहा। वे बोल उठे, 'कबीर का घर बाज़ार में, गलकटियों के पास।' गलकटियो मतलब गला काटनेवाले कसाई के नज़दीक में हमारा घर है। फिर कहते हैं, 'करेगा सो पावेगा, तू क्यों होवे उदास?' यह जो करेगा, वह उसका फल भोगेगा। तू किसलिए उदास होता है फिर?! तब तुलसीदास समझ गए कि मेरी सारी भक्ति को बेकार कर दिया, आबरू ले ली। इस तरह आबरू न जाए वैसे रहना चाहिए। हमें भावना अच्छी रखनी चाहिए। इस काल में नहीं, अनादिकाल से ऐसा का ऐसा चलता ही आया है। रामचंद्रजी के नौकर भी माँसाहार करते थे। क्योंकि क्षत्रिय माँसाहार के बिना रहते होंगे क्या? ___हमें भावना अच्छी रखनी चाहिए। इस हुल्लड़ में पड़ना नहीं, इस टोले में। क्योंकि ये लोग नासमझी से झगड़े खड़े करते हैं। उससे कुछ बदलता नहीं और नुकसान होता है। उसका अर्थ क्या है? वह कब? कि भाई अपना ही राजा हो तब अधिकार चलाए कि 'भाई, हेय आपको कुछ खास दिनों में नहीं करना है।' अभी अपने हाथ में सत्ता नहीं है और ऐसी अक्कलमंदी करने का किसने कहा है? आप अपना काम करो न ! भगवान के घर कोई मरता ही नहीं। आप अपना काम कर लो और अनुमोदना रखो। कोई खराब भाव नहीं रखना। सबसे बड़ा अहिंसक कौन? परन्तु इन जीवों को बचाने के बदले एक ही वस्तु रखनी है कि किसी जीव को किंचित् मात्र दुख न हो। फिर मन से भी दुख न हो, वाणी से भी दुख न हो और वर्तन से भी दुख न हो! बस, उसके जैसा बड़ा ६४ अहिंसक कोई है नहीं। ऐसा भाव हो, इतनी जागृति होने के बावजूद देह से यदि जीवजंतु कुचल जाएँ, वह 'व्यवस्थित'! और नयी बचाने की बाते किसी की करनी नहीं। अभयदान, कौन-से जीवों के लिए? प्रश्नकर्ता : मैं तो बात करता हूँ कि तब दस वर्ष पहले से, जीवों को यदि अभयदान मिलता हो तो कंदमूल की तुरन्त ही बाधा ले ली थी हमने। दादाश्री : अभयदान तो, वह जीव चल-फिर सकता हो ऐसा हो, वह जीव घबराता हो, भय को समझता हो, उसे अभयदान देना है। भय से त्रस्त होता हो, उसे अभयदान देना है। दूसरे लोग भय को समझते नहीं, उन्हें अभयदान कैसे होंगे? अभयदान यानी जो जीव भयभीत होते हैं ऐसे हैं, छोटी चींटी भी हम हाथ लगाएँ न तो वह भयभीत होती है। उसे अभयदान दो। पर यह गेहूँ का दाना, बाजरे का दाना, वह भयभीत नहीं होता है। उसे क्या निर्भय बनाना? भय समझते ही नहीं, अभयदान किस तरह देना फिर? प्रश्नकर्ता : एकदम करेक्ट बात है। दादाश्री : इसलिए यह समझे बिना सब चला है। वे ये चुपड़ने की पी जाते हैं। फिर कहेंगे, 'भगवान महावीर की दवाई पी गया और मर गया!''अरे, महावीर भगवान का फजीता किसलिए करता है?' अभी यही व्यापार चालू है। चुपड़ने की पी जाएँगे और फिर कहेंगे धर्म गलत है। मुए, धर्म तो गलत होतो होगा? पहले चुपड़ने की दवाई है वह पीता था? प्रश्नकर्ता : पहले तो कुछ पता ही नहीं था। दादाश्री : यह चुपड़ने की या पीने की है पता ही नहीं था! जो जीव भयभीत होते हैं, उन्हें त्रसकाय जीव कहा है। इसलिए यह भयसंज्ञा उत्पन्न हुई है, उसके लिए भगवान ने बात की है। दूसरों के लिए तो ऐसा ही कहा है कि पानी को फालतू ढोलना मत। नहाना, पीना, धोना, कपड़े

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