Book Title: Ahimsa
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 26
________________ अहिंसा औलाद बहुत बढ़ती हैं। तो वह माँस खाना अच्छा। उससे भी आगे कोई कहे, 'हमें प्रगति करनी है।' तो यह माँस खाना भी नुकसानदायक है। उसके बदले तू अंडे खा। माँस मत खाना तू। अब उससे भी आगे बढ़ना है, तो उसे कहूँ कि, 'तू कंदमूल खाना।' उससे भी आगे बढ़ना हो तो उसे हम कहें, 'इन कंदमूल के सिवाय दाल, चावल, रोटी, लड्डू, घी, गोल सब खाना।' और उससे आगे बढना हो तो हम कहें कि. 'ये छः वीगई हैं - गोल, घी, शहद, दही, मक्खन और वह सब बंद कर और ये दाल-चावलरोटी-सब्जी खा।' फिर आगे यह कुछ भी रहता नहीं। इस प्रकार भोजन के भाग हैं। उसमें जिसे जो भाग पसंद आए वह ले। ये सब रास्ते बताए हुए हैं। इस प्रकार आहार का वर्णन है। और यह वर्णन समझने के लिए है, करने के लिए नहीं है। ये भाग किसलिए भगवान ने किए हैं? कि आवरण टूटें इसके लिए। इस रस्ते चलें, तो अंदर आवरण टूटते जाते हैं। विज्ञान, रात्रिभोजन का अहिंसा प्रश्नकर्ता : परन्तु रात्रिभोजन किसलिए नहीं लेना चाहिए? दादाश्री : सूर्य की उपस्थिति में शाम का भोजन लेना चाहिए। ऐसा जैनमत ने कहा है और वेदांत ने भी ऐसा कहा है। सूर्य जब तक हो तब तक अंदर पंखुड़ी खुली रहती है, इसलिए उस समय खा लेना चाहिए, ऐसा वेदांत ने कहा है। इसलिए रात को तू भोजन लेगा तो क्या नुकसान होगा? कि वह कमल तो बंद हो गया. इसलिए पाचन तो जल्दी नहीं ही होगा। पर दूसरा क्या नुकसान होगा? वह इन्होंने, तीर्थंकरों ने कहा है कि रात को सूर्यनारायण अस्त हो जाते हैं, तब जीवजंतु जो घूमते हैं, वे सब जीव खुद के घर की तरफ वापिस लौटते हैं। कौए, कुत्ते, कबूतर, फिर आकाश के जीव, सभी घर की तरफ लौटते हैं, खुद के घौंसलों की तरफ जाते हैं। अंधेरा होने से पहले घर में घुस जाते हैं। कईबार आकाश में बादल जबरदस्त आए हों और सूर्यनारायण अस्त हुआ या नहीं अस्त हुआ वह पता नहीं चलता, परन्तु जीव वापिस लौटते हैं उस समय समझ लेना कि ये सूर्यनारायण अस्त हो गए। वे जीव अपनी आंतरिक शक्ति से देख सकते हैं। अब उस समय छोटे से छोटे जीव भी घर में घुसते हैं और बहुत सूक्ष्म जीव, जो आँखों से नहीं दिखते, दूरबीन से नहीं दिखते, ऐसे जीव भी घर में अंदर घुस जाते हैं। और अंदर जाकर जहाँ पर भोजन होता है, उस पर बैठ जाते हैं। हमें पता भी नहीं चले कि अंदर बैठे हैं। क्योंकि उनका रंग ऐसा होता है कि चावल पर बैठें तो चावल जैसा ही रंग होता है और रोटी पर बैठे तो वे रोटी के रंग के दिखते हैं, बाजरे की रोटी पर बैठे तो उसके रंग के दिखते हैं। इसलिए रात को यह भोजन नहीं खाना चाहिए। रात्रिभोजन नहीं करना चाहिए, फिर भी लोग करते हैं। यह कुछ लोगों को पता नहीं है कि रात्रिभोजन से क्या नुकसान है और जिन्हें पता है वे दूसरे संयोगों में फंसे हुए होते हैं। बाकी रात्रिभोजन न करें तो बहुत उत्तम है। क्योंकि वह महाव्रत है। वह पाँच के साथ छठा महाव्रत जैसा प्रश्नकर्ता : रात्रिभोजन के बारे में कुछ मार्गदर्शन दीजिए। जैनो में वह निषेध है। दादाश्री : रात्रिभोजन यदि न किया जाए तो वह सबसे उत्तम वस्तु है। वह अच्छी दृष्टि है। धर्म का और उसका लेना-देना नहीं है। फिर भी यह तो धर्म में डाल दिया है, उसका कारण क्या है? कि जितनी शरीर की शुद्धि होती है, उतना धर्म में आगे बढ़ते हैं। उस हिसाब से धर्म में डाल दिया है। बाकी धर्म में कोई उसकी ज़रूरत नहीं है। पर शरीर की शुद्धि के लिए सबसे अच्छी वस्तु यह है। प्रश्नकर्ता : तो इन वीतरागों ने लोगों से जो कहा है कि रात्रिभोजन नहीं लेना चाहिए। वह पाप-पुण्य के लिए था या शारीरिक तंदुरुस्ती के लिए था? दादाश्री : शारीरिक तंदुरुस्ती और हिंसा के कारण भी कहा था। है। प्रश्नकर्ता : संयोगवश रात्रिभोजन करना पड़े तो उसमें कर्म का बंधन है?

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