Book Title: Ahimsa
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 31
________________ अहिंसा ४९ हुआ है और ब्लड ही आपका यह नोनवेजिटेरियनवाला है। अब केवल हर्ज किसे है? कि जिसके ब्लड में नोनवेजिटेरियन न हो, जिसकी माता के दूध में नोनवेजिटेरियन न हो, उसे लेने की छूट नहीं है। और आप लेते हो वह फायदेवाला - नुकसानदायक माने बिना लेते हो। फायदा या नुकसानदायक जानकर लेते नहीं।' इसलिए माँसाहार जो करते हो, उन पर चिढ़ रखने जैसा नहीं है। यह तो अपनी खाली कल्पना ही है। बाकी, जिन लोगों का खुद का खुराक है, उसका हमें हर्ज नहीं है। खुद काटकर खाओगे? प्रश्नकर्ता: पर आज तो सोसाइटी में घुस गया है इसलिए माँसाहार करते हैं। दादाश्री : वह सब शौक कहलाता है। अपनी मदर के दूध में आया हुआ हो, तो आपको हमेशा के लिए खाने में हर्ज नहीं है। प्रश्नकर्ता: मदर माँसाहार नहीं करती हो तो क्या करना चाहिए? दादाश्री : तब तो फिर आपसे किस तरह खाया जाए? आपके ब्लड में नहीं आया हो, वह आपको पचेगा किस तरह? वह आपको आज पाचन हो गया हुआ लगता है, पर वह तो अंत में नुकसान आकर खड़ा रहता है। आज आपको वह पता नहीं चलता। इसलिए न खाएँ तो उत्तम है। छूटे नहीं तो 'गलत है, छूट जाए तो उत्तम है' ऐसी भावना रखनी है। बाकी, अपनी ये गायें कभी माँसाहार करती नहीं हैं, ये घोड़े और भैंसे भी करती नहीं हैं। और वे शौक भी नहीं रखते। बहुत भूखी हो, फिर माँसाहार रखे तब भी नहीं करतीं। इतना तो जानवरों में होता है। जब कि अभी तो इस हिन्दुस्तान के लड़के और जैनों के लड़के, जिनके माँ-बाप माँसाहार नहीं करते, वे भी माँसाहार करना सीख गए हैं। तब मैंने उनसे कहा कि 'आपको माँसाहार करना हो तो मुझे हर्ज नहीं, पर खुद काटकर खाओ। मुर्गी होती है वह आप खुद काटकर खाओ।' अरे, खून देखने की अहिंसा तो शक्ति नहीं और माँसाहार करता है। खून देखें तो ऐसे घबरा जाए ! इसलिए भान नहीं कि क्या खा रहा हूँ यह और खून देखेगा तो उस घड़ी तुझे कँपकँपी छूट जाएगी। यह तो खून देखे न, उसका काम है। जो खून में खेले होते हैं उन क्षत्रियों का काम है। खून देखे तो घबरा जाता है या नहीं? ५० प्रश्नकर्ता: घबराहट हो जाती है। दादाश्री : तो फिर उससे माँसाहार किया ही कैसे जाए? कोई काटे और आप खाओ वह मिनिंगलेस है। आप वह मुर्गा कट रहा हो, उस घड़ी उसकी यदि आर्तता सुनो न, तो सारी ज़िन्दगी तक वैराग्य न जाए, इतनी आर्तता होती है। मैंने खुद सुना हुआ है। तब मुझे हुआ कि ओहोहो, कितना दुख होता होगा ? ! महिमा, सात्विक आहार की प्रश्नकर्ता भगवान की भक्ति में शाकाहारी लोगों को और माँसाहारी लोगों को कोई रुकावट आ सकती है? उसमें आपका क्या मंतव्य है ? दादाश्री : ऐसा है न, माँसाहारी कैसा होना चाहिए? उसकी मदर के दूध में माँसाहार का दूध होना चाहिए। ऐसे माँसाहारी को भगवान की भक्ति में रुकावट नहीं आती। उसकी मदर का दूध माँसाहारी न हो और फिर माँसाहारी बन गया उसे रुकावट है। बाकी, भक्ति के लिए शाकाहारी और माँसाहारी में रुकावट बिलकुल नहीं है। प्रश्नकर्ता: तो शुद्ध और सात्विक आहार बिना भक्ति के हो सकता है या नहीं होता? दादाश्री : नहीं हो सकता। पर इस काल में तो अब क्या हो? शुद्ध सात्विक आहार, वह हमें प्राप्त होना, या वह होना बहुत मुश्किल वस्तु है और मनुष्य ऐसे काल में फिसल न जाए, कलियुग छुए नहीं, ऐसे मनुष्य बहुत कम होते हैं। और न हो तो दोस्ती पैठ जाती है या कोई ऐसा मिल

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