Book Title: Agnatkartuk Avachuri Author(s): Shrichandravijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 1
________________ सप्टेम्बर २०१० २३ श्रीमानतुजाचार्य रचित श्रीभक्तामरस्तोत्रनी अज्ञातकर्तृक अवचूरि पंन्यास श्रीचन्द्रविजय _ आ. श्री विजयशीलचन्द्रसूरिजी म. द्वारा प्राप्त भक्तामर स्तोत्रनी अप्रगटहस्तलिखित अवचूरिनी प्रति, १० पत्रनी अने अन्तमांना उल्लेख प्रमाणे ३७६ श्लोक प्रमाणनी छे. अवचूरि तेने कही शकाय के : (१) ग्रन्थनी वृत्तिना लांबा अर्थो, वधारे करेली छणावट, बीजा पर्यायो, अर्थान्तरो वगेरे छोडी दईने सारभूत एवा मूलभूत टीकाना ज टीकांशो (२) अथवा ग्रन्थने संक्षिप्तरूपमां के (३) पर्यायरूपमां ढाळीने समजावq ते. भक्तामर स्तोत्रनी आ अवचूरि माटे कंईक जाणीए. अवचूरिकार प्रारम्भमां नमस्कारात्मक श्लोकमां देलुल्लुपुरनायक श्री युगादीश-आदीश्वर भगवानने नमस्कार करी भक्तामरमहास्तोत्रनो कंईक अर्थ जणावे छे. ____ श्लोक वांचता पहेला तो एवो ज ख्याल आवी जाय के : पोते ज स्तोत्र सम्बन्धी अर्थ जणावी रह्या छ- लखी रह्या छे. परन्तु अन्तमां लखेल"इति श्री भक्तामरस्तोत्रस्याऽवचूरिलिखिता वृत्तेरुपरि" एनाथी ख्याल आवे छे के वृत्ति उपरनी ज आ अवचूरि छे. अने ए वृत्ति सं. १४२६ ना वर्षे रुद्रपल्लीयगच्छीय पूज्य गुणाकरसूरि म. रचित १५७२ श्लोक प्रमाण विवृत्ति टीका. विवृत्तिटीकानी साथे सरखावता-मेळवता अवचूरि माटे करेल उपरोक्त अर्थघटन-विधान सार्थक जणाय छे. जैन साहित्य-जगतमां अवचूरि सम्बन्धी विपुल साहित्य प्रगट-अप्रगट स्वरूपे विद्यमान छे. __ प्रस्तुत अवचूरिना कर्ता कोण ? ते कई सालमां रचना वगेरे आदिअंतमां लखेल न होवाना कारणे जाणी शकातुं नथी. अवचूरिकारश्रीए प्रारम्भ श्लोकमां जणावेल 'देलुल्लापुर' नाम विशे,Page Navigation
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