Book Title: Agam Sutra Satik 04 Samavay AngSutra 04
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 4
________________ विषयानुक्रमः मूलाङ्काः समवाय: | पृष्टाङ्क: मूलाङ्काः समवायः पृष्टाङ्कः १२७- एकानपञ्चाशत् १८३ पञ्चाशत् १०३ १०३ 1 ८५ १५३. पञ्चसप्तात ८६ १५४-१५५ पट् सप्तति सप्तसप्तति अष्टसम्मति ८७ | १५८ एकोनाशीति ८८ १५१- अशीति १२९- एकपञ्चाशत द्विपञ्चाशत् १३१- | त्रिपञ्चाशत् १३२. चतुष्पञ्चाशत् १३३- | पञ्चपञ्चाशत् १०४ १०५ | एकाशीति १०७ १३४ षट्पञ्चाशत १०७ १०८ १०९ ११५ १३५- । सप्तपञ्चाशत् अष्टपञ्चाशत् १३७- | एकोनषष्टि १३८- | षष्टि १३९- | एकषष्टि १४०- | द्विषष्टि ११५ ११२ १५३ १४५ ११३ ११४ ११४ ८२ | १६१- । द्वयशीति | ८९ | १६२- | यशीति ९० १६३. चतुरशीति ९१ । १६४ पञ्चाशीति | ९१ १६५. | षडशीति सप्ताशीति ९२ | १६७- | अष्टाशीति ९४ | १६८- । एकोननवति ९४ | १६९. । | नवति १७०- एकनवति ९५, १७१- द्विनवति ९६ | १७२- | त्रिनवति | ९८ | १७३- | चतुर्नवति १७४- पञ्चनवति | ९८ | १७५- षण्णवति | ९९ / १७६- । सप्तनवति १००, १७७. अष्टनवति १०२ १७८- | नवनवति | १०२ १७९ | शत - १८०-३८३ प्रकीर्णकः समवायः ११६ ११६ १४२. चतुःषष्टि १४३. पञ्चषष्टि १४४. षट्षष्टि १४५- सप्तषष्टि १४६- | अटषष्टि १४७- एकोनसप्तति १४८- सप्तति १४९- । एकसप्तति १५० द्विसप्तति १५१- | त्रिसप्तति १५२- १ चतुःप्तति ११७ ११७ ११८ ११८ ११९ १२० १२१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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