Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra Author(s): Darbarilal Nyayatirth Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti View full book textPage 4
________________ प्रस्तावना. बर मास लाग्या. तथा न मास संपूर्ण थतांज मनके समाधिमा रही काल कर्यो. त्यारे श्री शय्यंजव श्राचार्यना नेत्रोमांथी हर्षाश्रुनी जलधारा बुटी. त्यारे यशोनादिक साधुए ते अश्रुनुं कारण पूब्याथी आचार्य महाराजे मनकनो सर्व वृत्तांत कही संनलाव्यो. ते सांजली तेउने मनमां पश्चात्ताप थयो के, अहो ! थापणे गुरुपुत्र मनकनी सेवा करी शक्या नहीं. तथा पबी संघना आग्रहथी श्री शय्यंनवस्वामीए उधरेला ते दशे अध्ययनो प्रगट राख्यां, अने एवी रीते विकाले ते दश अध्ययननी गुंथणी करवामां आवेली होवाथी ते सूत्रनुं नाम “ दशवकालिक” राखवामां आव्यु बे.तथा उपरनी बे चूलिका तो श्रीमंधरखामीए संघने नेट तरिके मोकलेली , ते वात प्रसिज . एवी रीते था दशवैकालिक सूत्रनी उत्पत्ति थ . श्रा दशवैकालिकसूत्रमा रहेला दश अध्ययनो तथा बन्ने चूलिका अवश्य साधु ने ध्यानमा राखवा लायक बे; अने ते ध्यानमा राख्याथी तेमने तेमना अमूल्य चारित्राचारमा अतिचार दोष लागतो नथी. यहीं ते विषेर्नु वधारे ब्यान नहीं करता था सूत्र आद्यथी ते अंतसुधि वांची जवानी तथा ते ध्यानमा राखवानीज श्रमो सर्वने जलामण करीए बीए. श्रा सूत्रपर चौदसोने चम्मालीस ग्रंथना कर्ता महान श्राचार्य श्री हरिजन सूरिजीए शिष्यबोधिनी नामनी टीका तथा श्रवचुरी रचेली . तथा खरतर गरमा थएला युग प्रधान श्री जिनचं सूरिना शिष्य श्री सकलचं गणिना शिष्य श्री समयसुंदर गणिए विक्रम संवत १६ए१ मां दीपिका तामनी शब्दार्थ वृत्ति पण बनावी बे. तेथी अमोए पण यथामति संशोधन करी करावीने ते हारिजजी टीका, अबचूरि तथा समयसुंदरजीनी दीपिका टीका मूलसहित श्रा ग्रंथमां गपी . तेम मूल सूत्रनो गुजराती अर्थ करीने पण या ग्रंथमां बाप्यो बे. या ग्रंथ घणोज उपयोगी होवाथी बापी प्रसिझ को बे. बेवटे तेमां मूल सूत्रनो संपूर्ण पाठ पण दाखल करवामां श्राव्यो . प्रमादवशथी या ग्रंथमां जे कंई बापतां करतां दोष रह्यो होय ते “मिछामि पुक्कडं.' श्रावक. नीमासिंद माणेक. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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